गद्यांश MCQ Quiz in বাংলা - Objective Question with Answer for गद्यांश - বিনামূল্যে ডাউনলোড করুন [PDF]
Last updated on Apr 1, 2025
Latest गद्यांश MCQ Objective Questions
Top गद्यांश MCQ Objective Questions
गद्यांश Question 1:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए -
वस्तुतः पूँजीवादी व्यवस्था में दो मुख्य वर्ग होते हैं - बुर्जुआ और सर्वहारा। लेकिन इनके बीच एक अन्य वर्ग भी होता है जिसे मध्य वर्ग कहते हैं। इस वर्ग की समाज की सत्ता संरचना में कोई खास स्थान नहीं मिलता, परंतु इसके कुछ फायदे उसे अवश्य मिलते हैं। इसके अतिरिक्त सर्वहारा वर्ग को इस समाज में कोई फायदा नहीं मिलता। धन रहने की बात तो दूर, उन्हें बुनियादी जरूरतें प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है। सर्वहारा वर्ग से संबद्ध होने में उन्हें पहचान पाना। इन परिस्थितियों में सर्वहारा वर्ग की शक्ति कमजोर होती है और सत्ता में बुर्जुआ वर्ग की स्थिति मजबूत बनी रहती है। ऐतिहासिक विकास क्रम में ‘श्रेणी’ शब्द के स्थान पर जब भौगोलिक क्रांति के साथ बुर्जुआ व सर्वहारा वर्ग उभरा तो इन दोनों के साथ मध्य वर्ग अस्तित्व में आया। इसके अपने वर्ग का कोई इतिहास नहीं मिलता। आधुनिक पूँजीवादी समाजों में सामान्यतः मध्य समूह सामंती किलों का सदस्य है – पहला, छोटे व्यापारी, दूसरे पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी जो अपनी सेवाओं को बेचते हैं, तीसरे निजी बुर्जुआ भी आते हैं। ये सर्वहारा के समान ही होते हैं लेकिन संभावना रहती है कि वे अपने कार्य हेतु मजदूरों पर श्रमिकों को रख लें। इस तरह इन्हें छोटा बुर्जुआ समझा जा सकता है।
छोटे व्यापारी किनके समान होते हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 1 Detailed Solution
छोटे व्यापारी सर्वहारा वर्ग के समान होते हैं।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- आधुनिक पूँजीवादी समाजों में सामान्यतः मध्य समूह सामंती किलों का सदस्य है –
- पहला, छोटे व्यापारी, दूसरे पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी जो अपनी सेवाओं को बेचते हैं,
- तीसरे निजी बुर्जुआ भी आते हैं। ये सर्वहारा के समान ही होते हैं लेकिन संभावना रहती है
- कि वे अपने कार्य हेतु मजदूरों पर श्रमिकों को रख लें।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- बुर्जुआ वर्ग के: अनुच्छेद में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है कि छोटे व्यापारी बुर्जुआ वर्ग के समान होते हैं।
- मध्य वर्ग के: अनुच्छेद यह बताता है कि छोटे व्यापारी, पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी और निजी बुर्जुआ मध्य वर्ग में आते हैं, लेकिन यह भी बताता है कि छोटे व्यापारी सर्वहारा वर्ग के समान होते हैं।
- किन्हीं के समान नहीं: यह विकल्प भी सही नहीं हो सकता क्योंकि अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि छोटे व्यापारी सर्वहारा के समान होते हैं।
गद्यांश Question 2:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए -
वस्तुतः पूँजीवादी व्यवस्था में दो मुख्य वर्ग होते हैं - बुर्जुआ और सर्वहारा। लेकिन इनके बीच एक अन्य वर्ग भी होता है जिसे मध्य वर्ग कहते हैं। इस वर्ग की समाज की सत्ता संरचना में कोई खास स्थान नहीं मिलता, परंतु इसके कुछ फायदे उसे अवश्य मिलते हैं। इसके अतिरिक्त सर्वहारा वर्ग को इस समाज में कोई फायदा नहीं मिलता। धन रहने की बात तो दूर, उन्हें बुनियादी जरूरतें प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है। सर्वहारा वर्ग से संबद्ध होने में उन्हें पहचान पाना। इन परिस्थितियों में सर्वहारा वर्ग की शक्ति कमजोर होती है और सत्ता में बुर्जुआ वर्ग की स्थिति मजबूत बनी रहती है। ऐतिहासिक विकास क्रम में ‘श्रेणी’ शब्द के स्थान पर जब भौगोलिक क्रांति के साथ बुर्जुआ व सर्वहारा वर्ग उभरा तो इन दोनों के साथ मध्य वर्ग अस्तित्व में आया। इसके अपने वर्ग का कोई इतिहास नहीं मिलता। आधुनिक पूँजीवादी समाजों में सामान्यतः मध्य समूह सामंती किलों का सदस्य है – पहला, छोटे व्यापारी, दूसरे पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी जो अपनी सेवाओं को बेचते हैं, तीसरे निजी बुर्जुआ भी आते हैं। ये सर्वहारा के समान ही होते हैं लेकिन संभावना रहती है कि वे अपने कार्य हेतु मजदूरों पर श्रमिकों को रख लें। इस तरह इन्हें छोटा बुर्जुआ समझा जा सकता है।
किस वर्ग का इतिहास 19 वीं सदी से पूर्व नहीं मिलता है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 2 Detailed Solution
मध्य वर्ग का इतिहास 19 वीं सदी से पूर्व नहीं मिलता है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- इन परिस्थितियों में सर्वहारा वर्ग की शक्ति कमजोर होती है और सत्ता में बुर्जुआ वर्ग की स्थिति मजबूत बनी रहती है।
- ऐतिहासिक विकास क्रम में ‘श्रेणी’ शब्द के स्थान पर जब भौगोलिक क्रांति के साथ बुर्जुआ व सर्वहारा वर्ग उभरा
- तो इन दोनों के साथ मध्य वर्ग अस्तित्व में आया। इसके अपने वर्ग का कोई इतिहास नहीं मिलता।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- बुर्जुआ वर्ग का: बुर्जुआ वर्ग का इतिहास पहले से मिलता है और इसका उल्लेख किया गया है, इसलिए यह विकल्प सही नहीं है।
- सर्वहारा वर्ग का: सर्वहारा वर्ग का भी इतिहास मिलता है और इसका उल्लेख हुआ है, इसलिए यह विकल्प भी सही नहीं है।
- बुर्जुआ तथा सर्वहारा वर्ग का: जैसा कि ऊपर बताया गया है, बुर्जुआ और सर्वहारा दोनों का इतिहास मिलता है, इसलिए यह विकल्प भी सही नहीं है।
गद्यांश Question 3:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए -
वस्तुतः पूँजीवादी व्यवस्था में दो मुख्य वर्ग होते हैं - बुर्जुआ और सर्वहारा। लेकिन इनके बीच एक अन्य वर्ग भी होता है जिसे मध्य वर्ग कहते हैं। इस वर्ग की समाज की सत्ता संरचना में कोई खास स्थान नहीं मिलता, परंतु इसके कुछ फायदे उसे अवश्य मिलते हैं। इसके अतिरिक्त सर्वहारा वर्ग को इस समाज में कोई फायदा नहीं मिलता। धन रहने की बात तो दूर, उन्हें बुनियादी जरूरतें प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है। सर्वहारा वर्ग से संबद्ध होने में उन्हें पहचान पाना। इन परिस्थितियों में सर्वहारा वर्ग की शक्ति कमजोर होती है और सत्ता में बुर्जुआ वर्ग की स्थिति मजबूत बनी रहती है। ऐतिहासिक विकास क्रम में ‘श्रेणी’ शब्द के स्थान पर जब भौगोलिक क्रांति के साथ बुर्जुआ व सर्वहारा वर्ग उभरा तो इन दोनों के साथ मध्य वर्ग अस्तित्व में आया। इसके अपने वर्ग का कोई इतिहास नहीं मिलता। आधुनिक पूँजीवादी समाजों में सामान्यतः मध्य समूह सामंती किलों का सदस्य है – पहला, छोटे व्यापारी, दूसरे पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी जो अपनी सेवाओं को बेचते हैं, तीसरे निजी बुर्जुआ भी आते हैं। ये सर्वहारा के समान ही होते हैं लेकिन संभावना रहती है कि वे अपने कार्य हेतु मजदूरों पर श्रमिकों को रख लें। इस तरह इन्हें छोटा बुर्जुआ समझा जा सकता है।
उक्त अनुच्छेद में किन-किन वर्गों का उल्लेख है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 3 Detailed Solution
उक्त अनुच्छेद में वर्गों का उल्लेख है- बुर्जुआ, सर्वहारा, मध्य वर्ग तथा छोटा बुर्जुआ का
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- इन परिस्थितियों में सर्वहारा वर्ग की शक्ति कमजोर होती है और सत्ता में बुर्जुआ वर्ग की स्थिति मजबूत बनी रहती है।
- ऐतिहासिक विकास क्रम में ‘श्रेणी’ शब्द के स्थान पर जब भौगोलिक क्रांति के साथ बुर्जुआ व सर्वहारा वर्ग उभरा
- तो इन दोनों के साथ मध्य वर्ग अस्तित्व में आया। इसके अपने वर्ग का कोई इतिहास नहीं मिलता।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- केवल बुर्जुआ का: इसका मतलब है कि अनुच्छेद में सिर्फ "बुर्जुआ" वर्ग का उल्लेख किया गया है।
- लेकिन इस विकल्प को सही नहीं माना जा सकता क्योंकि अनुच्छेद में बुर्जुआ, सर्वहारा, और मध्य वर्ग तीनों का उल्लेख किया गया है।
- केवल सर्वहारा का: इसका मतलब है कि अनुच्छेद में केवल "सर्वहारा" वर्ग का उल्लेख किया गया है।
- लेकिन यह भी सही नहीं है क्योंकि अनुच्छेद में सर्वहारा के साथ-साथ बुर्जुआ और मध्य वर्ग का भी उल्लेख है।
- केवल मध्य वर्ग का: इसका मतलब है कि अनुच्छेद में केवल "मध्य वर्ग" का उल्लेख किया गया है।
- लेकिन यह भी सही नहीं है क्योंकि अनुच्छेद में मध्य वर्ग के साथ-साथ बुर्जुआ और सर्वहारा का भी उल्लेख है।
गद्यांश Question 4:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए :-
संप्रदाय और धर्म में मूलभूत अंतर है। संप्रदाय एक विशेष प्रकार की पूजा पद्धति, मत, मजहब का प्रतीक है। अपनी रुचि और प्रकृति के आधार पर व्यक्ति किसी संप्रदाय में सम्मिलित होकर अपना विकास कर सकता है, अपने आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने की दिशा कर सकता है। संप्रदाय आध्यात्मिक विकास की एक सीढ़ी है। मनुष्य अपनी सुविधा और मनोरोचना के अनुसार किसी संप्रदाय को चुन सकता है। संप्रदाय, मत, पंथ या मजहब को धर्म नहीं कहा जा सकता। धर्म तो समाज की धारणा करता है। धर्म तो समाज के नियमों को कहते हैं। वे नियम जिन्हें समाज व्यवस्थित रूप से चलता है, धर्मनियम (Rule of Law) के परिचायक हैं। धर्म और संप्रदाय का यही मूलभूत अंतर है। संप्रदाय को धर्म की संज्ञा देना धर्म को न समझना है। संप्रदाय संकुचित और धर्म विशाल है। संप्रदाय एक विशेष मत की आस्था है, धर्म सार्वभौमव्यापी तथा सर्वग्राह्य है, मानवमात्र के लिए जीवन की सम्यक प्रकार से जीवन धारणा, समाज धारणा के लिए विशेषमान जीवन का दृष्टिकोण है।
उपरोक्त गद्यांश के अनुसार इनमें से कौन-सा कथन सही नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 4 Detailed Solution
उपरोक्त गद्यांश के अनुसार इनमें से कथन सही नहीं है- संप्रदाय आध्यात्मिक विकास की एकमात्र सीढ़ी है
Key Points
- गद्यांश के अनुसार -
- संप्रदाय संकुचित और धर्म विशाल है।
- संप्रदाय एक विशेष मत की आस्था है, धर्म सार्वभौमव्यापी तथा सर्वग्राह्य है,
- मानवमात्र के लिए जीवन की सम्यक प्रकार से जीवन धारणा, समाज धारणा के लिए विशेषमान जीवन का दृष्टिकोण है।
Additional Information
अन्य विकल्प -
- सही कथन - गद्यांश के अनुसार, संप्रदाय आध्यात्मिक विकास की एक सीढ़ी है। मनुष्य अपनी सुविधा और मनोरोचना के अनुसार किसी संप्रदाय को चुन सकता है।
गद्यांश Question 5:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए :-
संप्रदाय और धर्म में मूलभूत अंतर है। संप्रदाय एक विशेष प्रकार की पूजा पद्धति, मत, मजहब का प्रतीक है। अपनी रुचि और प्रकृति के आधार पर व्यक्ति किसी संप्रदाय में सम्मिलित होकर अपना विकास कर सकता है, अपने आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने की दिशा कर सकता है। संप्रदाय आध्यात्मिक विकास की एक सीढ़ी है। मनुष्य अपनी सुविधा और मनोरोचना के अनुसार किसी संप्रदाय को चुन सकता है। संप्रदाय, मत, पंथ या मजहब को धर्म नहीं कहा जा सकता। धर्म तो समाज की धारणा करता है। धर्म तो समाज के नियमों को कहते हैं। वे नियम जिन्हें समाज व्यवस्थित रूप से चलता है, धर्मनियम (Rule of Law) के परिचायक हैं। धर्म और संप्रदाय का यही मूलभूत अंतर है। संप्रदाय को धर्म की संज्ञा देना धर्म को न समझना है। संप्रदाय संकुचित और धर्म विशाल है। संप्रदाय एक विशेष मत की आस्था है, धर्म सार्वभौमव्यापी तथा सर्वग्राह्य है, मानवमात्र के लिए जीवन की सम्यक प्रकार से जीवन धारणा, समाज धारणा के लिए विशेषमान जीवन का दृष्टिकोण है।
उपरोक्त गद्यांश के अनुसार संप्रदाय और धर्म में मूलभूत अंतर क्या है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 5 Detailed Solution
उपरोक्त गद्यांश के अनुसार संप्रदाय और धर्म में मूलभूत अंतर है- धर्म समाज की धारणा करता है।
Key Points
- गद्यांश के अनुसार -
- संप्रदाय, मत, पंथ या मजहब को धर्म नहीं कहा जा सकता।
- धर्म तो समाज की धारणा करता है। धर्म तो समाज के नियमों को कहते हैं।
- वे नियम जिन्हें समाज व्यवस्थित रूप से चलता है, धर्मनियम (Rule of Law) के परिचायक हैं।
- धर्म और संप्रदाय का यही मूलभूत अंतर है।
Additional Information अन्य विकल्प -
- संप्रदाय ही धर्म है - यह गद्यांश के विपरीत है, क्योंकि गद्यांश में स्पष्ट किया गया है कि संप्रदाय को धर्म नहीं कहा जा सकता।
- धर्म व्यक्तिगत होता है - यह भी सही नहीं है क्योंकि गद्यांश में धर्म को समाज की धारणा के रूप में बताया गया है।
- संप्रदाय को धर्म की संज्ञा देना सही है - यह भी गद्यांश के विपरीत है, क्योंकि गद्यांश में कहा गया है कि संप्रदाय को धर्म नहीं कहा जा सकता।
गद्यांश Question 6:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए :-
संप्रदाय और धर्म में मूलभूत अंतर है। संप्रदाय एक विशेष प्रकार की पूजा पद्धति, मत, मजहब का प्रतीक है। अपनी रुचि और प्रकृति के आधार पर व्यक्ति किसी संप्रदाय में सम्मिलित होकर अपना विकास कर सकता है, अपने आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने की दिशा कर सकता है। संप्रदाय आध्यात्मिक विकास की एक सीढ़ी है। मनुष्य अपनी सुविधा और मनोरोचना के अनुसार किसी संप्रदाय को चुन सकता है। संप्रदाय, मत, पंथ या मजहब को धर्म नहीं कहा जा सकता। धर्म तो समाज की धारणा करता है। धर्म तो समाज के नियमों को कहते हैं। वे नियम जिन्हें समाज व्यवस्थित रूप से चलता है, धर्मनियम (Rule of Law) के परिचायक हैं। धर्म और संप्रदाय का यही मूलभूत अंतर है। संप्रदाय को धर्म की संज्ञा देना धर्म को न समझना है। संप्रदाय संकुचित और धर्म विशाल है। संप्रदाय एक विशेष मत की आस्था है, धर्म सार्वभौमव्यापी तथा सर्वग्राह्य है, मानवमात्र के लिए जीवन की सम्यक प्रकार से जीवन धारणा, समाज धारणा के लिए विशेषमान जीवन का दृष्टिकोण है।
ऊपर के गद्यांश का उचित शीर्षक क्या हो सकता है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 6 Detailed Solution
ऊपर के गद्यांश का उचित शीर्षक हो सकता है- संप्रदाय और धर्म
Key Points
- गद्यांश के अनुसार -
- संप्रदाय और धर्म में मूलभूत अंतर है।
- संप्रदाय एक विशेष प्रकार की पूजा पद्धति, मत, मजहब का प्रतीक है।
- अपनी रुचि और प्रकृति के आधार पर व्यक्ति किसी संप्रदाय में सम्मिलित होकर अपना विकास कर सकता है,
- अपने आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने की दिशा कर सकता है।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- संप्रदाय और अध्यात्म - यह शीर्षक उपयुक्त नहीं है क्योंकि गद्यांश स्पष्ट रूप से संप्रदाय और अध्यात्म के बारे में नहीं बोलता।
- धर्म का स्वरूप - यह भी उचित नहीं है क्योंकि गद्यांश संप्रदाय और धर्म के बीच अंतर पर बातचीत करता है, धर्म के स्वरूप पर नहीं।
- संप्रदाय और समाज - यह भी सही नहीं है क्योंकि गद्यांश में समाज के बारे में कोई उल्लेख नहीं है।
गद्यांश Question 7:
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न का उत्तर दीजिए:
सुख-दुख में मुस्काना धीरज से रहना,
वीरों की माता हूँ वीरों की बहना ।
मैं वीर नारी हूँ
साहस की बेटी,
मातृभूमि - रक्षा को
वीर सजा देती।
आकुल अंतर की पीर राष्ट्र हेतु सहना,
वीरों की माता हूँ वीरों की बहना।
मात-भूमि जन्म भूमि
राष्ट्र-भूमि मेरी,
कोटि-कोटि वीर पूत
द्वार-द्वार देरी ।
जीवन भर मुस्काए भारत का अँगना,
वीरों की माता हूँ वीरों की बहना
प्रश्न : भारत का अँगना कब तक मुस्कराए ?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 7 Detailed Solution
इसका सही उत्तर "जीवन-भर" है।
Key Points
- कविता की पंक्ति "जीवन भर मुस्काए भारत का अँगना" स्पष्ट रूप से बताती है कि भारत का अँगना जीवन-भर मुस्कराएगा।
- यह पंक्ति राष्ट्र की सतत समृद्धि और खुशहाली को दर्शाती है।
- इसलिए, सही उत्तर जीवन-भर है।
- यह विकल्प गलत है क्योंकि कविता में भारत के अँगना की खुशहाली को क्षणिक नहीं, बल्कि स्थायी बताया गया है।
- यह शब्द कविता के संदर्भ में उपयुक्त नहीं है और अर्थपूर्ण नहीं लगता।
- यह विकल्प भी गलत है क्योंकि यह समय की अवधि को नहीं दर्शाता और कविता के संदर्भ से मेल नहीं खाता।
गद्यांश Question 8:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए:-
श्रम का महत्व सर्वविदित है। इसके माध्यम से मानव विशाल बाद्धाओं को नियंत्रित करता है। गरजते तथा उफनते सागर की लहरों को चीरकर जलपोत चलाकर आगे बढ़ता है। विशाल पर्वतों के मध्य से राह खोजता है। दुर्गम स्थलों को पलक झपकते ही हल करता है। उद्यमी मानव को ही लक्ष्मी वरण करती है। श्रम जीवन में उन्नति की कुंजी है। श्रम ही वह अक्षय और अटूट द्रव्य है जिसे प्राप्त करने में सहायक है। श्रमजीवी मानव राष्ट्र का आभूषण है। आलसी जीवन का प्रतीक है। किसी कवि के शब्दों में, ‘पति का नाम अमर जीवन है।’ निष्क्रियता ही घोर मरण है। जीवन के क्षेत्र में श्रम अनिवार्य है। श्रम किए बिना किसी भी व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है। ईश्वर ने हमें दो हाथ-पैर दिए हैं, वे परिश्रम करने के लिए ही हैं। राष्ट्रीय उत्थान और आत्मनिर्भरता के लिए श्रम तथा सतत उद्यमशीलता परम आवश्यक है। अतः जो आदमी एक क्षण भी व्यर्थ गँवाता है, वह ईश्वर का अपमान करता है। अपने राष्ट्र का अहित करता है। आज देश में जो भयानक गरीबी और बेकारी है उसे देखकर अत्यंत दुःख होता है। अशिक्षित श्रम करने में जी चुराते हैं, उसे हम नहीं जानते। भारत का मनुष्य अवश्य आलस्य से हटकर कार्य में अपना सम्मान समझता है यदि सब श्रम करें तो अपनी गरीब दीन-हीन की भेदभाव समाप्त हो जाए। आज जो जनसंख्या वृद्धि हो रही है, उसके मूल में श्रम न करना है। महात्मा गांधी जी ने कहा था, यदि सब लोग अपने को परिश्रम की कमाई खाएँ तो दुनिया में अन्न की कमी न रहे, और सबको अवकाश का समय भी मिले।
महात्मा गाँधी जी ने किसकी कमाई खाने के लिए कहा है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 8 Detailed Solution
महात्मा गाँधी जी ने परिश्रम की कमाई खाने के लिए कहा है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- आज जो जनसंख्या वृद्धि हो रही है, उसके मूल में श्रम न करना है।
- महात्मा गांधी जी ने कहा था, यदि सब लोग अपने को परिश्रम की कमाई खाएँ
- तो दुनिया में अन्न की कमी न रहे, और सबको अवकाश का समय भी मिले।
Additional Information अन्य विकल्प -
- खेती -
- खेती विशेष क्षेत्र में सीमित है जबकि परिश्रम व्यापक है और हर प्रकार के कार्य में शामिल है।
- गांधी जी ने परिश्रम की कमाई खाने पर जोर दिया है, जो सभी कार्यों में लागू होता है, न कि केवल खेती में।
- दुकान -
- दुकान चलाने का काम भी परिश्रम के अंतर्गत आता है, लेकिन गांधी जी का सन्देश सामान्य परिश्रम पर केंद्रित है,
- जो कि सभी प्रकार के श्रम और मेहनत के कार्यों को शामिल करता है।
- ईमानदारी -
- ईमानदारी एक महत्वपूर्ण मूल्य है, लेकिन यहाँ परिश्रम की कमाई पर जोर है।
- परिश्रम का तात्पर्य मेहनत और श्रम से है, जबकि ईमानदारी उसकी गुणवत्ता को दर्शाती है। गांधी जी की सोच में श्रम का प्राथमिक महत्व है।
गद्यांश Question 9:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए:-
श्रम का महत्व सर्वविदित है। इसके माध्यम से मानव विशाल बाद्धाओं को नियंत्रित करता है। गरजते तथा उफनते सागर की लहरों को चीरकर जलपोत चलाकर आगे बढ़ता है। विशाल पर्वतों के मध्य से राह खोजता है। दुर्गम स्थलों को पलक झपकते ही हल करता है। उद्यमी मानव को ही लक्ष्मी वरण करती है। श्रम जीवन में उन्नति की कुंजी है। श्रम ही वह अक्षय और अटूट द्रव्य है जिसे प्राप्त करने में सहायक है। श्रमजीवी मानव राष्ट्र का आभूषण है। आलसी जीवन का प्रतीक है। किसी कवि के शब्दों में, ‘पति का नाम अमर जीवन है।’ निष्क्रियता ही घोर मरण है। जीवन के क्षेत्र में श्रम अनिवार्य है। श्रम किए बिना किसी भी व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है। ईश्वर ने हमें दो हाथ-पैर दिए हैं, वे परिश्रम करने के लिए ही हैं। राष्ट्रीय उत्थान और आत्मनिर्भरता के लिए श्रम तथा सतत उद्यमशीलता परम आवश्यक है। अतः जो आदमी एक क्षण भी व्यर्थ गँवाता है, वह ईश्वर का अपमान करता है। अपने राष्ट्र का अहित करता है। आज देश में जो भयानक गरीबी और बेकारी है उसे देखकर अत्यंत दुःख होता है। अशिक्षित श्रम करने में जी चुराते हैं, उसे हम नहीं जानते। भारत का मनुष्य अवश्य आलस्य से हटकर कार्य में अपना सम्मान समझता है यदि सब श्रम करें तो अपनी गरीब दीन-हीन की भेदभाव समाप्त हो जाए। आज जो जनसंख्या वृद्धि हो रही है, उसके मूल में श्रम न करना है। महात्मा गांधी जी ने कहा था, यदि सब लोग अपने को परिश्रम की कमाई खाएँ तो दुनिया में अन्न की कमी न रहे, और सबको अवकाश का समय भी मिले।
राष्ट्र का आभूषण किसको कहा गया है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 9 Detailed Solution
राष्ट्र का आभूषण श्रमजीवी मानव को कहा गया है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- श्रम ही वह अक्षय और अटूट द्रव्य है जिसे प्राप्त करने में सहायक है।
- श्रमजीवी मानव राष्ट्र का आभूषण है। आलसी जीवन का प्रतीक है।
- किसी कवि के शब्दों में, ‘पति का नाम अमर जीवन है।’
Additional Informationअन्य विकल्प -
- संतोषी मानव -
- संतोषी मानव अपनी स्थिति से संतुष्ट रहते हैं और शायद स्वयं को अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित न करें।
- जबकि राष्ट्र की उन्नति के लिए श्रमजीवी मानव का योगदान महत्वपूर्ण होता है।
- आलसी मानव -
- आलसी मानव राष्ट्र का आभूषण नहीं हो सकते क्योंकि वे श्रम, परिश्रम और योगदान से विरक्त होते हैं।
- उनका आलस्य राष्ट्र के विकास में बाधा उत्पन्न करता है।
- बुद्धिजीवी मानव -
- बुद्धिजीवी मानव समाज में ज्ञान और विचारों का महत्वपूर्ण योगदान देते हैं,
- लेकिन राष्ट्र की बुनियादी संरचना और आर्थिक उन्नति में श्रमजीवी मानव का योगदान अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक है।
गद्यांश Question 10:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए:-
श्रम का महत्व सर्वविदित है। इसके माध्यम से मानव विशाल बाद्धाओं को नियंत्रित करता है। गरजते तथा उफनते सागर की लहरों को चीरकर जलपोत चलाकर आगे बढ़ता है। विशाल पर्वतों के मध्य से राह खोजता है। दुर्गम स्थलों को पलक झपकते ही हल करता है। उद्यमी मानव को ही लक्ष्मी वरण करती है। श्रम जीवन में उन्नति की कुंजी है। श्रम ही वह अक्षय और अटूट द्रव्य है जिसे प्राप्त करने में सहायक है। श्रमजीवी मानव राष्ट्र का आभूषण है। आलसी जीवन का प्रतीक है। किसी कवि के शब्दों में, ‘पति का नाम अमर जीवन है।’ निष्क्रियता ही घोर मरण है। जीवन के क्षेत्र में श्रम अनिवार्य है। श्रम किए बिना किसी भी व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है। ईश्वर ने हमें दो हाथ-पैर दिए हैं, वे परिश्रम करने के लिए ही हैं। राष्ट्रीय उत्थान और आत्मनिर्भरता के लिए श्रम तथा सतत उद्यमशीलता परम आवश्यक है। अतः जो आदमी एक क्षण भी व्यर्थ गँवाता है, वह ईश्वर का अपमान करता है। अपने राष्ट्र का अहित करता है। आज देश में जो भयानक गरीबी और बेकारी है उसे देखकर अत्यंत दुःख होता है। अशिक्षित श्रम करने में जी चुराते हैं, उसे हम नहीं जानते। भारत का मनुष्य अवश्य आलस्य से हटकर कार्य में अपना सम्मान समझता है यदि सब श्रम करें तो अपनी गरीब दीन-हीन की भेदभाव समाप्त हो जाए। आज जो जनसंख्या वृद्धि हो रही है, उसके मूल में श्रम न करना है। महात्मा गांधी जी ने कहा था, यदि सब लोग अपने को परिश्रम की कमाई खाएँ तो दुनिया में अन्न की कमी न रहे, और सबको अवकाश का समय भी मिले।
श्रम के बिना व्यक्ति को क्या खाने का अधिकार नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 10 Detailed Solution
श्रम के बिना व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- किसी कवि के शब्दों में, ‘पति का नाम अमर जीवन है।’ निष्क्रियता ही घोर मरण है।
- जीवन के क्षेत्र में श्रम अनिवार्य है। श्रम किए बिना किसी भी व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है।
- ईश्वर ने हमें दो हाथ-पैर दिए हैं, वे परिश्रम करने के लिए ही हैं।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- सब्जी - यह वाक्य भी सही माना जा सकता है, लेकिन 'रोटी' खाने का ज़िक्र करना अधिक व्यापक और सामान्य विचार को दर्शाता है।
- मिठाई - यह विकल्प में मिठाई विलासिता का प्रतीक है और यह हर रोज़ की आवश्यकता नहीं है।
- पैसा - यह विकल्प आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, यह बताता है कि किसी भी प्रकार की आर्थिक संपत्ति या धनार्जन श्रम के बिना संभव नहीं है।