जहां वादी, विशिष्ट पालन के लिए वाद में, करार के अस्तित्व और प्रतिवादी द्वारा उसके अपालन को साबित कर देता है, वहां न्यायालय:

  1. विशिष्ट निष्पादन हेतु आदेश जारी करने के लिए बाध्य है
  2. प्रतिफल की अपर्याप्तता के आधार पर विशिष्ट निष्पादन के लिए डिक्री जारी करने से इंकार कर सकता है
  3. विशिष्ट निष्पादन के लिए आदेश जारी करने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि राहत विवेकाधीन है
  4. इनमे से कोई भी नहीं।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : विशिष्ट निष्पादन के लिए आदेश जारी करने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि राहत विवेकाधीन है

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सही उत्तर विकल्प 3 है।

मुख्य बिंदु विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 20:- विशिष्ट पालन की डिक्री देने के संबंध में विवेकाधिकार।—

(1) विनिर्दिष्ट पालन का आदेश देने की अधिकारिता विवेकाधीन है, और न्यायालय केवल इसलिए ऐसा अनुतोष देने के लिए बाध्य नहीं है कि ऐसा करना विधिपूर्ण है; किन्तु न्यायालय का विवेक मनमाना नहीं, अपितु उचित और युक्तियुक्त है, न्यायिक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है तथा अपील न्यायालय द्वारा सुधार योग्य है।
(2) निम्नलिखित ऐसे मामले हैं जिनमें न्यायालय विशिष्ट पालन का आदेश न देने के लिए उचित रूप से विवेक का प्रयोग कर सकता है:—

  • (क) जहां संविदा की शर्तें या संविदा करते समय पक्षकारों का आचरण या अन्य परिस्थितियां जिनके अधीन संविदा की गई थी, ऐसी हैं कि संविदा, यद्यपि शून्यकरणीय नहीं है, तथापि वादी को प्रतिवादी पर अनुचित लाभ देती है; या
  • (ख) जहां संविदा के निष्पादन से प्रतिवादी पर कुछ कठिनाई आएगी, जिसका उसने पूर्वानुमान नहीं किया था, जबकि उसके अ-निष्पादन से वादी पर ऐसी कोई कठिनाई नहीं आएगी; या
  • (ग) जहां प्रतिवादी ने ऐसी परिस्थितियों में अनुबंध किया है जो यद्यपि अनुबंध को शून्यकरणीय नहीं बनाती, तथापि विशिष्ट पालन लागू कराना अनुचित बनाती है।

स्पष्टीकरण 1.—
प्रतिफल की अपर्याप्तता मात्र, या मात्र यह तथ्य कि अनुबंध प्रतिवादी के लिए बोझिल है या अपनी प्रकृति में अप्रासंगिक है, खंड (क) के अर्थ में अनुचित लाभ या खंड (ख) के अर्थ में कठिनाई नहीं माना जाएगा।
स्पष्टीकरण 2.—
यह प्रश्न कि क्या किसी संविदा के निष्पादन से प्रतिवादी को खंड (ख) के अर्थ में कठिनाई होगी, उन मामलों को छोड़कर जहां कठिनाई संविदा के पश्चात् वादी के किसी कार्य के परिणामस्वरूप हुई हो, संविदा के समय विद्यमान परिस्थितियों के संदर्भ में निर्धारित किया जाएगा।
(3) न्यायालय किसी भी मामले में विशिष्ट पालन की डिक्री देने के लिए उचित रूप से विवेक का प्रयोग कर सकता है, जहां वादी ने विशिष्ट पालन योग्य किसी संविदा के परिणामस्वरूप सारवान कार्य किया हो या हानि उठाई हो।
(4) न्यायालय किसी पक्षकार को किसी संविदा के विशिष्ट निष्पादन से केवल इस आधार पर इंकार नहीं करेगा कि संविदा पक्षकार के कहने पर प्रवर्तनीय नहीं है।

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