रासो काव्य और कवि MCQ Quiz in বাংলা - Objective Question with Answer for रासो काव्य और कवि - বিনামূল্যে ডাউনলোড করুন [PDF]
Last updated on Apr 15, 2025
Latest रासो काव्य और कवि MCQ Objective Questions
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रासो काव्य और कवि Question 1:
इनमें से कौन-सा युग्म सुमेलित नहीं हैं :
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 1 Detailed Solution
सुमेलित युग्म नहीं हैं - नरपति नाल्ह - परमालरासो
नरपति नाल्ह-
- आदिकालीन रासो कवि है।
- रचना -
- बीसलदेवरासो।
Key Pointsपरमालरासो-
- रचनाकार - जगनिक
- विधा - रासो काव्य
- समय - 13 वीं शती
- विषय-
- महोबा के राजा परमाल देव के दो वीरों आल्हा और ऊदल की वीरता का वर्णन है।
Important Pointsपृथ्वीराज रासो-
- रचनाकार-चंदबरदाई
- विधा-रासो काव्य
- समय-12 वीं शती
- विषय-
- पृथ्वीराज चौहान के शौर्य और वीरता के साथ-साथ संयोगिता के साथ उनकी प्रेम कहानी का वर्णन है।
खुमान रासो-
- रचनाकार-दलपति विजय
- विधा-रासो काव्य
- समय-9 वीं शती
- विषय-
- चित्तौड़ नरेश खुमाण की वीरता का वर्णन किया गया है।
विजयपाल रासो-
- रचनाकार-नल्हसिंह भाट
- विधा-रासो काव्य
- समय-11 वीं शती
- विषय-
- विजयगढ़ के राजा विजयपाल का प्रशस्ति-ग्रंथ है।
Additional Informationबीसलदेव रासो-
- विषय-
- विरहपरक संदेश काव्य है।
- इसमें अजमेर के राजा चौहान बीसलदेव तथा राजा भोज की पुत्री राजमती के विवाह, वियोग और पुनर्मिलन की कथा वर्णित है।
रासो काव्य और कवि Question 2:
आदिकाल की रचना है
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 2 Detailed Solution
- खुमान रासो आदिकाल की रचना है।
- “खुमान रासो” के रचियता दलपत विजय हैं।
Key Points
- खुमान रासो एक प्रबंध काव्य है|
- खुमान रासो एक वीर रस की रचना है जो कि राजस्थानी भाषा में है|
- खुमान रासो का रचना काल 9वी शताब्दी है|
- खुमान रासो में 5000 छंद हैं|
- वीर रस के साथ-साथ श्रृंगार रस की भी प्रधानता है।
- इसमें दोहा, सवैया, कवित्त आदि छंद प्रयुक्त हुए है।
- इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी है।
Important Points
- अखरावट : भक्तिकाल, जायसी
- छत्रसाल दसक : रीतिकाल, भूषण
- दीपशिखा : आधुनिक काल, महादेवी
Additional Information
रचनाकार |
रचना |
जगनिक |
दो ग्रन्थ "आल्हाखण्ड तथा परमाल रासो' |
चन्द्रबरदाई |
पृथ्वीराजरासो |
विद्यापति |
कीर्तिलता कीर्तिपताका तथा पदावली |
रासो काव्य और कवि Question 3:
बीसलदेव रासो का काव्य रूप क्या हैं ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 3 Detailed Solution
बीसलदेव रासो का काव्य रूप है- मुक्तक काव्य
मुक्तक काव्य-
- काव्य का वह रूप जिसमें एक ही छंद में एक विचार, एक भाव या एक अनुभूति को बिना किसी पूर्वोपर संबंध के अपने आप में पूर्णता के साथ प्रस्तुत किया गया हो, मुक्तक काव्य कहलाता है।
Key Pointsबीसलदेव रासो -
- बीसलदेव रासो के रचनाकार नरपति नाल्ह है।
- हिंदी काव्य में बारहमासा वर्णन सबसे पहले बीसलदेव रासो में मिलता है।
- यह एक वीर गीत है जो 12वीं शती में लिखा गया।
- रचनाकाल-1515ई.
- छन्द 125 हैं
- यह एक विरह परक सन्देश काव्य है, रासो होते हुए भी प्रधानतः श्रृंगारी काव्य है।
Important Pointsप्रबंध काव्य-
- इसमें कोई प्रमुख कथा काव्य के आदि से अंत तक क्रमबद्ध रूप में चलती है।
- कथा का क्रम बीच में कहीं नहीं टूटता और गौण कथाएँ बीच-बीच में सहायक बन कर आती हैं।
- जैसे- रामचरित मानस।
खंड काव्य-
- खंडकाव्य में सम्पूर्ण रचना में एक ही छंद का प्रयोग होता है।
- खण्डकाव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है।
- जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खण्डकाव्य है।
- "खण्ड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है।
गीतिकाव्य-
- वो शब्द होते हैं जो गीत या काव्य रचना को बनाते हैं।
Additional Informationनरपति नाल्ह-
- जन्म-14वीं शती
- नरपति नाल्ह राजस्थान के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे।
- वे सुप्रसिद्ध रचना 'बीसलदेव रासो' के रचयिता कवि थे।
- नरपति नाल्ह को डिंगल का प्रसिद्ध कवि माना जाता है।
रासो काव्य और कवि Question 4:
बीसलदेव रासो की नायिका का नाम क्या है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 4 Detailed Solution
बीसलदेव रासो की नायिका का नाम 'राजमती' है।
- बीसलदेव रासो के रचनाकार नरपति नाल्ह हैं।
Key Points
- बीसलदेव रासो पुरानी पश्चिमी राजस्थानी की एक सुप्रसिद्ध रचना है।
- बीसलदेव रासो को चार खंडों में विभक्त किया गया है
- प्रथम खण्ड - मालवा के परमार भोज की पुत्री राजमती से शाकम्भरी-नरेश बीसलदेव (विग्रहराज) के विवाह का वर्णन।
- द्वितीय खण्ड - बीसलदेव का राजमती से रूठकर उड़ीसा जाना।
- तृतीय खण्ड खण्ड - राजमती का विरह - वर्णन।
- चतुर्थ खण्ड - भोजराज द्वारा अपनी पुत्री को वापस ले आना; बीसलदेव को वहाँ से चित्तौड़ लाने का प्रसंग।
Additional Information
- नरपति नाल्ह पुरानी पश्चिमी राजस्थानी की सुप्रसिद्ध रचना "वीसलदेव रासो" के कवि हैं।
- इस रचना में उन्होंने स्वयं को कहीं "नरपति" लिखा है और कहीं "नाल्ह" लिखा है।
- सम्भव है कि नरपति उनकी उपाधि रही हो और "नाल्ह" उनका नाम हो।
रासो काव्य और कवि Question 5:
आदिकालीन रासो साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियों और विषय-वस्तु की दृष्टि से निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 5 Detailed Solution
आदिकालीन रासो साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियों और विषय-वस्तु की दृष्टि से कथन सही नहीं है- व्यापक राष्ट्रीयता की भावना का चित्रण
Key Pointsआदिकालीन रासो साहित्य की प्रवृत्तियाँ-
- ऐतिहासिक काव्यों की प्रधानता
- युद्धों का यथार्थ चित्रण
- चरित नायकों की वीर-गाथाओं का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन आदि।
Important Pointsआदिकाल-
- शुक्ल के अनुसार-
- "हिंदी साहित्य का आदिकाल संवत 1050 से लेकर संवत 1375 तक अर्थात महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीर देव के समय के कुछ पीछे तक माना जा सकता है।"
- अन्य नाम-
- चारण काल-ग्रियर्सन
- प्रारम्भिक काल-मिश्रबन्धु
- वीरगाथाकाल-रामचन्द्र शुक्ल
- वीरकाल-विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
- आधार काल-सुमन राजे
- सर्वमत हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा दिया गया नाम आदिकाल ही मान्य है।
Additional Informationकुछ आदिकालीन रासो साहित्य है-
- खुमाणरासो-दलपत विजय
- विजयपालरासो-नल्हसिंह
- बीसलदेवरासो-नरपति नाल्ह
- पृथ्वीराजरासो-चंदरबरदाई
- जयचंद प्रकाश-भट्ट केदार
- परमालरासो-जगनिक आदि।
रासो काव्य और कवि Question 6:
पृथ्वी राज रासो को किस रचनाकार ने पूर्ण किया था?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 6 Detailed Solution
- 'जल्हण' यहाँ सही विकल्प है। क्योंकि इस रासो काव्य को जल्हण द्वारा पूरा किया गया था।
- 'जल्हण' चंदबरदाई के पुत्र थे। इस रासो का रचना काल :- 1334ई माना गया है।
- 'जल्हण हत्थ दे चला' पंक्तियों से स्पष्ट है की चंदबरदाई अपने पुत्र को पृथ्वी राज रासो पुस्तक देकर गए थे।
Additional Information
- दलपति विजय -- खुमान रासो -- 1729ई
- नरपति नाल्ह -- बीसल देव रासो -- 1212ई
- विजयपाल रासो -- नल्ल सिंह -- 16 वीं शती ई.
रासो काव्य और कवि Question 7:
रासो ग्रन्थकारों में निम्नलिखित में से कौन-सी प्रवृत्ति नहीं थी ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 7 Detailed Solution
रासो ग्रन्थकारों में प्रवृत्ति नहीं थी- जैन-बौद्ध धर्म सम्बन्धि
Key Pointsरासो काव्य परम्परा की प्रवृत्तियाँ -
- चारण कवियों द्वारा रचित होने के कारण चाटुकारिता प्रधान था।
- ऐतिहासिकता का अभाव और कल्पना का समावेश।
- युद्धप्रेम का वर्णन अधिक।
- वीर रस व शृंगार रस की प्रधानता।
- डिंगल और पिंगल शैली का प्रयोग।
Important Pointsरासो काव्य -
- रासो का संबंध अधिकांशत: वीर काव्य से, जो डिंगल भाषा में लिखा गया ।
- रासो काव्य हिन्दी के आदिकाल में रचित ग्रन्थ हैं।
रासो शब्द की व्युत्पति संबंधी विद्वानों के मान्यताएं -
- रास - नन्ददुलारे वाजपेयी
- रासक - चन्द्रबली पाण्डेय , डॉ. दशरथ शर्मा , पंडित विश्वनाथ मिश्र , डॉ. माताप्रसाद गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी
- रसिक - नरोत्तम स्वामी
- राजसूय - गार्सा द तासी
- राजयश - डॉ. हरप्रसाद शास्त्री
- रसायण - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- रहस्य - कविराज श्यामलदास , डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल
Additional Informationप्रमुख रासो ग्रन्थ -
- पृथ्वीराज रासो - चंदबरदाई
- बीसलदेव रासो - नरपति नाल्ह
- परमाल रासो - जगनिक
- हम्मीर रासो - शार्ङ्धर
- खुमान रासो- दलपति विजय
- विजयपाल रासो - नल्लसिंह भाट
- बुद्धिरासो - जल्हण
रासो काव्य और कवि Question 8:
खुमान रासो की रचना कौन सी भाषा में की गई है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 8 Detailed Solution
"खुमान रासो" की रचना राजस्थानी भाषा में की गई है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (1) राजस्थानी भाषा सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है ।
Key Points
- खुमान रासो एक प्रबंध काव्य है|
- खुमान रासो एक वीर रस की रचना है जो कि राजस्थानी भाषा में है|
- खुमान रासो का रचना काल 9वी शताब्दी है|
- खुमान रासो में 5000 छंद हैं|
- वीर रस के साथ-साथ श्रृंगार रस की भी प्रधानता है।
- इसमें दोहा, सवैया, कवित्त आदि छंद प्रयुक्त हुए है।
- इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी है।
रासो काव्य और कवि Question 9:
रेवा तट पृथ्वीराज रासो का कौन सा सर्ग है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 9 Detailed Solution
"रेवा तट" "पृथ्वीराज रासो" का "27 वा सर्ग" है अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (3) 27 वा सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
Key Points
- पृथ्वीराज रासो की रचना चंद्रवरदाई ने की है।
- इसकी रचना 12 वीं शताब्दी में हुई थी।
- पृथ्वीराज रासो में 69 सर्ग हैं|
- पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके रचयिता चंदबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे।
Additional Information
चंदबरदाई
- जन्म: 1148 ई० लाहौर वर्तमान पाकिस्तान में
- मृत्यु: 1192 ई० गज़नी में
- पृथ्वीराज रासो हिंदी का सबसे बड़ा काव्य-ग्रंथ है। इसमें 10,000 से अधिक छंद हैं और तत्कालीन प्रचलित 6 भाषाओं का प्रयोग किया गया है।
रासो काव्य और कवि Question 10:
'कयमास वध' किस आदिकालीन रचना का अंश है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 10 Detailed Solution
'कयमास वध' पृथ्वीराजरासो आदिकालीन रचना का अंश है।
Key Pointsपृथ्वीराज रासो-
- रचनाकार-चन्दबरदाई
- समय-12 वीं शती
- काव्य रूप-प्रबंध काव्य
- विषय-
- इसमें पृथ्वीराज के शौर्य व वीरता के साथ-साथ संयोगिता के साथ उनकी प्रेम-कहानी का भी वर्णन है।
- इसमें 69 समय(सर्ग) है।
- इसमें 68 प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है।
- मिश्रबंधु-
- "हिन्दी का वास्तविक परतं महाकवि चंदबरदाई को हि कहा जा सकता है।"
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-
- "ये हिन्दी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं और इनका 'पृथ्वीराजरासो' हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है।"
Important Pointsजगनिक-
- आदिकाल में रासो परंपरा के कवि है।
- रचना-परमाल रासो
- समय-13 वीं शती
- काव्य रूप-वीरगीत
- विषय-महोबा के राजा परमाल देव के दो वीरों आल्हा और ऊदल की वीरता का वर्णन है।
- परमाल रासो को 'आल्हा खंड' के नाम से भी जाना जाता है।
- यह गीत मुख्यतः बैसवाड़ा में गायें जाते है।
हम्मीर रासो-
- रचनाकार- शार्डगंधर
- आचार्य शुक्ल ने 14वीं शताब्दी के ग्रंथ 'प्राकृत पैंगलम' के कुछ छंदों के आधार पर 'हम्मीर रासो' की कल्पना की।
दलपत विजय -
- रचनाकार- खुमान रासो
- रचनाकाल- 9 वीं शती
- काव्य रूप- प्रबंध काव्य
- विषय-
- चित्तौड़ नरेश खुमाण की वीरता का वर्णन मिलता है।
- मेवाड़ के परवर्ती शासकों(महाराणा प्रताप सिंह, राज सिंह) का भी वर्णन है।
- यह 5000 छंदों का विशाल ग्रंथ है।