रासो काव्य और कवि MCQ Quiz - Objective Question with Answer for रासो काव्य और कवि - Download Free PDF
Last updated on Jun 3, 2025
Latest रासो काव्य और कवि MCQ Objective Questions
रासो काव्य और कवि Question 1:
'रसिकप्रिया' किसकी प्रसिद्ध रचना है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 1 Detailed Solution
'रसिकप्रिया' केशव की प्रसिद्ध रचना है।
Key Pointsकेशवदास-
- जन्म- 1555-1617 ई.
- रीतिकाल की रीतिबद्ध शाखा के प्रमुख कवि है।
- यह निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित थे।
- उपनाम- वेदांती मिश्र।
- ये इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि थे,'कविप्रिया' ग्रन्थ की रचना इंद्रजीत सिंह की प्रेमिका गणिका प्रवीण राय को शिक्षा देने के लिए की गयी थी।
- रचनाएँ-
- रसिकप्रिया(1591 ई.)
- कविप्रिया(1601 ई.)
- रामचंद्रिका(1601 ई.)
- रतनबावनी(1607 ई.) आदि।
- रामचन्द्र शुक्ल-
- "केशवदास जी संस्कृत के पंडित थे अतः शास्त्रीय पद्धति से साहित्यचर्चा का प्रचार भाषा मे पूर्ण रूप से करने की इच्छा उनके लिए स्वभाविक थी।"
Important Pointsदेव-
- जन्म-1673 ई.
- पुरा नाम-देवदत्त
- रीतिकाल की रीतिबद्ध शाखा के प्रमुख कवि है।
- रचनाएँ-
- भाव विलास
- अष्टयाम
- भवानी विलास
- प्रेमचंद्रिका
- रस विलास
- सुखसागर तरंग
- देवमाया प्रपंच
- सुजान विनोद आदि।
पद्माकर-
- जन्म- 1753-1833ई.
- रीति काल के कवियों में पद्माकर का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- वे हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों में अंतिम चरण के सुप्रसिद्ध और विशेष सम्मानित कवि थे।
- अन्य रचनाएँ-
- पद्माभरण
- रामरसायन (अनुवाद)
- आलीजाप्रकाश
- प्रतापसिंह विरूदावली,
- ईश्वर-पचीसी
- यमुनालहरी
- प्रतापसिंह-सफरनामा
- भग्वत्पंचाशिका
- राजनीति
- कलि-पचीसी
- रायसा
- हितोपदेश भाषा (अनुवाद)
- अश्वमेध आदि।
चिंतामणि त्रिपाठी-
- जन्म- 1609-1685 ई.
- रसवादी आचार्य माने जाते हैं।यह शाहजी भोसला और शाहजहाँ के आश्रयदाता कवि रहे है।
- रचनाएं-
- कविकुलकल्पतरु
- छंद विचार
- कवित्त विचार
- काव्य विवेक
- काव्य प्रकाश आदि।
रासो काव्य और कवि Question 2:
'बीसलदेव रासो' किण भांत रो काव्य है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 2 Detailed Solution
सही उत्तर है - प्रेम काव्य
Key Points
- बीसलदेव रासो एक श्रृंगार प्रधान काव्य है।
- यह पुरानी पश्चिमी राजस्थानी में लिखा गया एक प्रसिद्ध रासो काव्य है।
- इसमें वीर और श्रृंगार रस का मिश्रण है, लेकिन श्रृंगार रस प्रधान है।
- यह काव्य घटनात्मक नहीं, बल्कि वर्णनात्मक है,
- जिसमें बीसलदेव और राजमती के प्रेम, विवाह और वियोग का वर्णन किया गया है।
Important Pointsबीसलदेव रासो -
- बीसलदेव रासो के रचनाकार नरपति नाल्ह है।
- हिंदी काव्य में बारहमासा वर्णन सबसे पहले बीसलदेव रासो में मिलता है।
- यह एक वीर गीत है जो 12वीं शती में लिखा गया।
- रचनाकाल-1515ई.
- छन्द 125 हैं।
Additional Informationवीर काव्य-
- एक ऐसा काव्य है जो वीरता, साहस, और युद्ध की भावना को व्यक्त करता है।
- यह साहित्य में वीरतापूर्ण नायकों, युद्धों, और महान कार्यों का वर्णन करता है,
- जिससे पाठकों में प्रेरणा और उत्साह पैदा होता है।
प्रेम काव्य-
- प्रेम काव्य या प्रेमाख्यान काव्य, हिन्दी साहित्य में एक विशेष काव्यधारा है
- जो प्रेम के विभिन्न रूपों, भावनाओं और अनुभवों को दर्शाती है।
- यह काव्य प्रेम की लौकिक और अलौकिक, दोनों अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करता है,
- जिसमें प्रेम, विरह, और मिलन के दृश्यों का चित्रण किया जाता है।
भक्ति काव्य-
- एक ऐसा काव्य है जो ईश्वर के प्रति प्रेम, समर्पण और भक्ति की भावनाओं को व्यक्त करता है।
- यह काव्य हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो मध्यकाल में विकसित हुआ था।
- इस काव्य में, कवि ईश्वर के विभिन्न रूपों की उपासना करते हैं और अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
प्रकृति काव्य-
- प्रकृति से जुड़ी काव्य रचनाओं को कहते हैं,
- जिसमें प्राकृतिक दुनिया का वर्णन, उसके साथ जुड़ाव या उसके बारे में विचार व्यक्त किए जाते हैं।
- यह कविताएं प्रकृति को विषय और प्रेरणा के रूप में मानती हैं।
रासो काव्य और कवि Question 3:
'खुमाण रासो' किसकी प्रसिद्ध रचना है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 3 Detailed Solution
'खुमाण रासो' की प्रसिद्ध रचना है- दलपति विजय
Key Pointsखुमान रासो के बारे -
- यह एक प्रबंध काव्य है।
- यह नवीं शताब्दी की रचना है।
- इसके रचयिता दलपति विजय हैं।
- इसमें नवीं शताब्दी के चित्तौड़ नरेश खुमाण के युद्धों का चित्रण है।
- इसमें वीर रस के साथ-साथ श्रृंगार रस की भी प्रधानता है।
Important Pointsदलपति विजय-
- रचनाकार- खुमान रासो
- रचनाकाल- 9 वीं शती
- काव्य रूप- प्रबंध काव्य
- विषय-
- चित्तौड़ नरेश खुमाण की वीरता का वर्णन मिलता है।
- मेवाड़ के परवर्ती शासकों(महाराणा प्रताप सिंह, राज सिंह) का भी वर्णन है।
- यह 5000 छंदों का विशाल ग्रंथ है।
Additional Informationशारंगधर-
- शार्ङ्गधर मध्यकाल के एक आयुर्वेदाचार्य थे
- जिन्होने शार्ङ्गधरसंहिता नामक आयुर्वैदिक ग्रन्थ की रचना की।
- शार्ङ्गधर का जन्म समय 13वीं-14वीं सदी के आसपास माना गया है।
- आचार्य शार्ङ्गधर के नाम से दो प्रसिद्ध ग्रन्थ है-
- शार्ङ्गधरसंहिता
- शार्ङ्गधरपद्धति।
नरपति नाल्ह-
- हिन्दी साहित्य के आदिकालीन कवि है।
- रचना-बीसलदेव रासो
- रचनाकाल-12 वीं शती
- काव्य रूप- वीरगीत
- मुख्य-
- यह एक विरहपरक संदेश काव्य है।
- इसमें अजमेर के राजा चौहान बीसलदेव तथा राजा भोज की पुत्री राजमती के विवाह, वियोग और पुनर्मिलन की कथा वर्णित है।
- हिंदी में सर्वप्रथम बारहमासा का उल्लेख इसी काव्य में मिलता है।
जगणिक-
- जगनिक का काव्यकाल 1165 ईस्वी से 1203 ईस्वी के बीच का था।
- जगनिक एक कवि थे जिन्होंने 'आल्हा खंड' और 'परमाल रासो' जैसी रचनाएं की थीं,
- वे चंदेल राजा परमार्दिदेव (परमाल) के दरबारी कवि थे।
रासो काव्य और कवि Question 4:
'पृथ्वीराज रासो' के रचयिता कौन हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 4 Detailed Solution
'पृथ्वीराज रासो' के रचयिता हैं- चंदबरदाई
Key Pointsचंदबरदाई-
- जन्म-1149-1200 ई.
- हिन्दी साहित्य के आदिकालीन कवि तथा पृथ्वीराज चौहान के मित्र थे।
- रचना- पृथ्वीराज रासो
Important Points पृथ्वीराज रासो-
- रचनाकार-चंदबरदाई
- रचनाकाल- 12 वीं शती
- काव्य रूप- प्रबंध
- मुख्य-
- यह रासो काव्य है।
- इसमें पृथ्वीराज चौहान के शौर्य और वीरता के साथ-साथ संयोगिता के साथ उनके प्रेम प्रसंग को भी चित्रित किया गया है।
- इसमें 69 समय(सर्ग) है।
- 68 प्रकार के छंदों का इसमें प्रयोग किया गया है।
- इसके उत्तरार्द्ध को चंदबरदाई के पुत्र जल्हण ने रचा था।
Additional Information दलपति विजय-
- दलपति विजय भारतीय कवि था, जिसे खुमान रासो का रचयिता माना गया है।
- खुमान रासो नवीं शताब्दी की रचना मानी जाती है। इसमें नवीं शती के चित्तौड़ नरेश खुमाण के युद्धों का चित्रण है।
नरपति नाल्ह-
- हिन्दी साहित्य के आदिकालीन कवि है।
- रचना-बीसलदेव रासो
- रचनाकाल-12 वीं शती
- काव्य रूप- वीरगीत
- मुख्य-
- यह एक विरहपरक संदेश काव्य है।
- इसमें अजमेर के राजा चौहान बीसलदेव तथा राजा भोज की पुत्री राजमती के विवाह, वियोग और पुनर्मिलन की कथा वर्णित है।
- हिंदी में सर्वप्रथम बारहमासा का उल्लेख इसी काव्य में मिलता है।
जगणिक-
- जगनिक का काव्यकाल 1165 ईस्वी से 1203 ईस्वी के बीच का था।
- जगनिक एक कवि थे जिन्होंने 'आल्हा खंड' और 'परमाल रासो' जैसी रचनाएं की थीं,
- वे चंदेल राजा परमार्दिदेव (परमाल) के दरबारी कवि थे।
रासो काव्य और कवि Question 5:
निम्नलिखित में से कौन-से कथन सत्य हैं ?
(A) 'पंचपांडव चरित रास' की रचना शालिभद्र सूरि ने 1303 ई० में की।
(B) 'भारतेश्वरबाहुबली रास' की रचना शालिभद्र सूरि ने 1213 ई० में की थी।
(C) 'चंदनबालारास' की रचना आसगु कवि ने 1209 ई० में की थी।
(D) 'कुमारपालप्रतिबोध' की रचना सोमप्रभ सूरि ने 1184 ई० में की थी।
(E) 'प्रबंध चिंतामणि ' की रचना जैनाचार्य मेरुतुंग ने 1304 ई० में की थी।
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए :
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 5 Detailed Solution
सही उत्तर है- केवल (D), (E)
Key Pointsसही है-
- (D) 'कुमारपालप्रतिबोध' की रचना सोमप्रभ सूरि ने 1184 ई० में की थी।
- (E) 'प्रबंध चिंतामणि ' की रचना जैनाचार्य मेरुतुंग ने 1304 ई० में की थी।
Important Pointsअन्य सही है-
- (A) 'पंचपांडव चरित रास' की रचना शालिभद्र सूरि ने 1350 ई० में की।
- (B) 'भारतेश्वरबाहुबली रास' की रचना शालिभद्र सूरि ने 1184 ई० में की थी।
- (C) 'चंदनबालारास' की रचना आसगु कवि ने 1200 ई० में की थी।
Top रासो काव्य और कवि MCQ Objective Questions
हिंदी का प्रथम महाकाव्य कौन सा है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDF- ‘पृथ्वीराज रासो’ हिंदी का प्रथम महाकाव्य है।
Key Points
- पृथ्वीराज रासो की रचना चंद्रवरदाई ने की है।
- इसकी रचना 12 वीं शताब्दी में हुई थी।
- पृथ्वीराज रासो में 69 सर्ग हैं|
- पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है।
- इसके रचयिता चंदबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे।
Additional Information
चंदबरदाई
- जन्म: 1148 ई० लाहौर वर्तमान पाकिस्तान में
- मृत्यु: 1192 ई० गज़नी में
- पृथ्वीराज रासो हिंदी का सबसे बड़ा काव्य-ग्रंथ है। इसमें 10,000 से अधिक छंद हैं और तत्कालीन प्रचलित 6 भाषाओं का प्रयोग किया गया है।
'खुमान रासो' के रचयिता कौन है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर दलपति विजय है।
Key Points
- 'खुमान रासो' के रचयिता दलपति विजय हैं।
- यह पाँच हजार छंदों का विशाल काव्य ग्रंथ है।
- खुमान रासो नवीं शताब्दी की रचना मानी जाती है। इसमें नवीं शती के चित्तौड़ नरेश खुमाण के युद्धों का चित्रण है।
- 'खुमान रासो' रचना में दोहा, सवैया, कवित्त आदि छंद प्रयुक्त हुए हैं तथा इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी है।
अन्य विकल्प -
कवि |
परिचय |
रचनायें |
जगनिक |
जगनिक महोबा के चन्देल राजा परमार्दिदेव के समकालीन जिझौतिया नायक परिवार में जन्मे कवि थे। महोबा के आल्हा-ऊदल को नायक मानकर आल्हखण्ड नामक ग्रंथ की रचना की जिसे लोक में 'आल्हा' नाम से प्रसिद्धि मिली। |
आल्हखण्ड |
चन्दबरदाई |
चन्दबरदाई हिन्दी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं। वे षड्भाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंद:शास्र, ज्योतिष, पुराण, नाटक आदि अनेक विद्याओं में पारंगत थे। |
पृथ्वीराज रासो |
नरपति नाल्ह |
नरपति नाल्ह पुरानी पश्चिमी राजस्थानी की सुप्रसिद्ध रचना "वीसलदेव रासो" के कवि हैं। |
गउरिका नंदन त्रिभुवन सार, दूसरइ कडवइ गणपति गाइ, हंस वाहणि देवी करि धरइ वीण, हंस गमणि मृगलोयणी नारि, बारहमासा |
'बीसलदेव रासो' में बीसलदेव की पत्नी कौन है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF'बीसलदेव रासो' में बीसलदेव की पत्नी राजमती है।
Key Points बीसलदेव रासो
- बीसलदेव रासो पुरानी पश्चमी राजस्थानी की एक सुप्रसिद्ध रचना है।
- इसके रचनाकार नरपति नाल्ह हैं।
- बीसलदेव रासो" की रचना चौदहवीं शती विक्रमी की मानी जाती है।
बीसलदेव रासो के चार खण्ड है-
- प्रथम खण्ड- मालवा के परमार भोज की पुत्री राजमती से शाकम्भरी-नरेश बीसलदेव (विग्रहराज) के विवाह का वर्णन,
- द्वितीय खण्ड- बीसलदेव का राजमती से रूठकर उड़ीसा जाना,
- तृतीय खण्ड खण्ड - राजमती का विरह-वर्णन
- चतुर्थ - भोजराज द्वारा अपनी पुत्री को वापस ले आना; बीसलदेव को वहाँ से चित्तौड़ लाने का प्रसंग।
Additional Information नरपति नाल्ह
- नरपति नाल्ह राजस्थान के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे।
- वे पुरानी पश्चिमी राजस्थानी भाषा की सुप्रसिद्ध रचना 'बीसलदेव रासो' के रचयिता कवि थे।
- अपनी रचना 'बीसलदेव रासो' में नरपति नाल्ह ने स्वयं को कहीं पर 'नरपति' लिखा है तो कहीं 'नाल्ह'।
- ऐसा सम्भव हो सकता है कि 'नरपति' उनकी उपाधि रही हो और 'नाल्ह' उनका नाम हो।
- 'बीसलदेव रासो' की रचना चौदहवीं शती विक्रमी की मानी जाती है। इसलिए नरपति नाल्ह का समय भी इसी के आस-पास का माना जा सकता है।
- नरपति नाल्ह को डिंगल का प्रसिद्ध कवि माना जाता है।
निम्नलिखित में से कौन 'चंदनबालारास' के रचयिता हैं ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFचंदनबाला रास के रचयिता आसगु है।
चन्दनबालारास
- लेखक :- आसगु
- रचना वर्ष :- 1200 ई.
- विधा :- खंडकाव्य
- रस :- करुण रस की रचना)
आसगु की अन्य रचना
- जीवदयारास (1200 ई.)
जिन धर्म सूरि : जम्बूस्वामीरास (1200 ई.), स्थूलिभद्ररास (1209 ई.)
सुमति गणि : नेमिनाथरास (1213 ई., नेमिनाथ-चरित)
मुनी जिन विजय :- भरतेश्वरबाहुबली रास
मुनि जिनविजय ने भरतेश्वरबाहुबली रास को जैन परंपरा का प्रथम रास माना है।
आदिकाल के प्रमुख कवि व उनकी रचनाएं
- सरहपाद (769 ई.) : दोहाकोश।
- स्वयम्भू (8वीं सदी) : 1.पउम चरिउ (पद्म-चरित, रामकाव्य), 2. रिट्ठणेमि चरिउ, 3.नागकुमार चरिउ, 4. स्वयम्भू छंद (पउम चरिउ (रामकाव्य) के कारण स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मीकि कहा जाता है)।
- जोइन्दु (8वीं शती) : परमप्पयासु (परमात्म प्रकाश, मुक्तक काव्य), योगसार
- पुष्पदंत (10वीं सदी) : महापुराण, णायकुमार चरिउ (नागकुमार-चरित), जसहर चरिउ (यशधर-चरित), कोश ग्रंथ। महापुराण में इन्होंने कृष्णलीला का वर्णन किया है, इसलिए अपभ्रंश का व्यास कहा जाता है।
- धनपाल (10वीं सदी) : भविसयतकहा (भविष्यदत्त कथा, एक बनिए की कहानी)
- देवसेन : श्रावकाचार (933 ई., सावयधम्म दोहा, डॉ. नगेन्द्र के अनुसार हिन्दी का पहला काव्यग्रंथ), लघुनयचक्र, दर्शनसार, तत्वसार,भावसंग्रह, ।
- मुनि राम सिंह : पाहुड़ दोहा (11वीं शती)
- मुनि कनकामर : करकण्ड चरिउ (11वीं शती)
- नयनन्दी : सुदंसणचरिउ (11वीं शती)
- वीर : जम्बूसामिचरिउ (11वीं शती, श्रृंगार-वैराग्यपरकचरित-काव्य)
- अब्दुर्रहमान : संदेश रासक (1147 ई. के आसपास)
- नरपति नाल्ह : बीसलदेवरासो (1155 ई.)
- सोमप्रभ सूरि : कुमारपाल प्रतिबोध (1184 ई., चम्पूकाव्य)
- शालिभद्र सूरि : भरतेश्वर बाहुबलीरास (1184 ई., मुनि जिन विजय के अनुसार जैन साहित्य की रास परम्परा का प्रथम ग्रंथ), बुद्धि रास (1184 ई.), पंचपंडवरास (1253 ई.)
- मधुकर कवि : जयमयंक-जसचंद्रिका (1186 ई.)
- हेमचंद्र सूरि (1085 ई.-1172 ई., कलिकालसर्वज्ञ) : कुमारपाल चरित, हेमचंद्रशब्दानुशासन, देशी नाममाला, छन्दानुशासन, योगश।
हिन्दी काव्य में बारहमासा वर्णन सबसे पहले कहाँ मिलता है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDF- हिंदी काव्य में बारहमासा वर्णन बीसलदेव रासो में सबसे पहले मिलता है ।
- बीसलदेव रासो में काव्य के अर्थ में रसायण शब्द बार - बार आया है , अतः रसायण शब्द होते होते रासो हो गया है ।
Key Points
- बीसलदेव रासो के रचनाकार हैं नरपति नाल्ह ।
- यह एक वीर गीत हैं जो 12 वीं शती में लिखा गया ।
- यह एक विरहपरक सन्देश काव्य है , रासो होते हुए भी यह प्रधानतः श्रृंगारी काव्य है ।
हिन्दी भाषा का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ कौन-सा है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFदिए गए विकल्पों में से हिन्दी भाषा का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ "पृथ्वीराज रासो" है।
Key Points
- पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है।
- जिसमें सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है।
- इसके रचयिता चंदबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे,
- और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी करते थे।
Important Pointsहिंदी में प्रथम-
- हिन्दी की प्रथम रचना- श्रावकाचार (देवसेन)
- हिंदी में प्रथम उपन्यास- परीक्षा गुरु (श्रीनिवास दास)
- हिंदी के प्रथम मौलिक कहानी- इंदुमती (किशोरी लाल गोस्वामी)
- हिंदी साहित्य में छंद शास्त्र की प्रथम रचना- छंदमाला
- हिंदी में काव्यशास्त्र की प्रथम पुस्तक-साहित्यलहरी (सूरदास)
- हिंदी का प्रथम मौलिक नाटक- नहुष (गोपालचंद्र)
- हिंदी का प्रथम यात्रा संस्मरण - लंदन यात्रा (महादेवी वर्मा)
Additional Information
सतसई-
- सतसई, मुक्तक काव्य की एक विशिष्ट विधा है।
- इसके अंतर्गत कविगण 700 या 700 से अधिक दोहे लिखकर एक ग्रंथ के रूप में संकलित करते रहे हैं।
- "सतसई" शब्द "सत" और "सई" से बना है, "सत" का अर्थ सात और सई का अर्थ "सौ" है।
- इस प्रकार सतसई काव्य वह काव्य है जिसमें सात सौ छंद होते हैं। बिहारी सतसई में एक मात्र ‘रोला’ छंद का प्रयोग किया गया है।
रामलला नहछू -
- रामलला नहछू गोस्वामी तुलसीदास की रचना है।
- इस रचना के दो पाठ प्राप्त हुए है- एक वह, जो प्रकाशित मिलता है, जिसमें 40 द्विपदियाँ हैं,
- और दूसरा उससे छोटा, जिसकी अभी तक एक ही प्रति मिली है और जिसमें केवल 26 द्विपदियाँ हैं।
- दोनों पाठों में समान द्विपदियाँ केवल 12 हैं।
आल्हा उदल-
- आल्ह-खण्ड लोक कवि जगनिक द्वारा लिखित एक वीर रस प्रधान काव्य हैं,
- जिसमें आल्हा और ऊदल की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन हैं।
चन्दबरदाई ने 'पृथ्वीराज रासो' में निम्नलिखित में से मुख्यतया किस छन्द का प्रयोग किया है ?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFपृथ्वीराज रासो में मुख्यतया कवित्त छंद प्रयोग किया गया है।
पृथ्वीराज रासो में ढाई हजार पृष्ठ और 69 समय (सर्ग या अध्याय) हैं।
जिस समय की यह कृति है उस समय के लगभग सभी छंदों का प्रयोग इसमें हुआ है। फिर भी मुख्य छंद कवित्त (छप्पय), दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या हैं।
पृथ्वीराज रासो
- रचनाकार :- चंद्रवरदाई
- छंद संख्या :- 1300
- इसे छंदों का अजायबघर भी कहा जाता है।
- इसके 4 संस्करण है।
- यह हिंदी का प्रथम महाकाव्य है।
- इसके वृहद संस्करण में 69 सर्ग हैं।
- पृथ्वीराज रासो में 68 प्रकार के छंद देखने को मिलते हैं।
आदिकाल की रचना है
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDF- खुमान रासो आदिकाल की रचना है।
- “खुमान रासो” के रचियता दलपत विजय हैं।
Key Points
- खुमान रासो एक प्रबंध काव्य है|
- खुमान रासो एक वीर रस की रचना है जो कि राजस्थानी भाषा में है|
- खुमान रासो का रचना काल 9वी शताब्दी है|
- खुमान रासो में 5000 छंद हैं|
- वीर रस के साथ-साथ श्रृंगार रस की भी प्रधानता है।
- इसमें दोहा, सवैया, कवित्त आदि छंद प्रयुक्त हुए है।
- इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी है।
Important Points
- अखरावट : भक्तिकाल, जायसी
- छत्रसाल दसक : रीतिकाल, भूषण
- दीपशिखा : आधुनिक काल, महादेवी
Additional Information
रचनाकार |
रचना |
जगनिक |
दो ग्रन्थ "आल्हाखण्ड तथा परमाल रासो' |
चन्द्रबरदाई |
पृथ्वीराजरासो |
विद्यापति |
कीर्तिलता कीर्तिपताका तथा पदावली |
पृथ्वीराज रासो कितने पृष्ठों का ग्रन्थ है?
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFपृथ्वीराजरासो ढाई हजार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है।
Key Points
- पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है।
- रचयिता :- चंदबरदाई
- जिसमें 69 समय (सर्ग या अध्याय) हैं।
- मुख्य छन्द हैं - कवित्त (छप्पय), दूहा (दोहा), तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या।
- रस :- वीर रस
- पृथ्वीराजरासो के पिछले भाग को चंद के पुत्र जल्हण द्वारा पूर्ण किया गया है।
शालिभद्र सूरि की रचना का नाम हैः
Answer (Detailed Solution Below)
रासो काव्य और कवि Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF"भारतेश्वर बाहुबली रास" की रचना "शाली भद्र सूरी" ने की है उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (2) भरतेश्वर बाहुबली रास सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।
Key Points
- रचनाकाल सं. 1231 वि. है।
- इसकी छन्द संख्या 203 है।
- इसमें जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्रों भरतेश्वर और बाहुबलि में राजगद्दी के लिए हुए संघर्ष का वर्णन है।
- इस रचना के दो संस्करण मिलते हैं। पहला प्राच्य विद्या मन्दिर बड़ौदा से प्रकाशित किया गया है तथा दूसरा "रास' और "रासान्वयी काव्य" में प्रकाशित हुआ है।
- डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने अपने ग्रन्थ "हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास" में शालिभद्र सूरि को "हिन्दी का प्रथम कवि" माना है।