काव्य गुण MCQ Quiz - Objective Question with Answer for काव्य गुण - Download Free PDF

Last updated on Apr 8, 2025

Latest काव्य गुण MCQ Objective Questions

काव्य गुण Question 1:

वीर रस में इनमें से कौन-से गुण की प्रधानता रहती है?

  1. ओज
  2. प्रसाद
  3. माधुर्य
  4. उपर्युक्त में से एक से अधिक
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : ओज

काव्य गुण Question 1 Detailed Solution

सही उत्तर है - ‘ओज’।
  • वीर रस में इनमें से ओज गुण की प्रधानता रहती है।

Key Points

  • ओज गुण वीर-रस में संयत भाव से रहता है। क्योकि, वीर उत्साही होते हैं, क्रोधी नहीं।
  • वीर रस का स्थायी भाव उत्साह हैं। युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता हैं।
    युद्ध मे विपक्षी को देखकर, ओजस्वी वीर घोषणाएं या वीर गीत सुनकर तथा उत्साह वर्धक कार्यकलापों को देखने से यह रस जाग्रत होता हैं।

Additional Information

  • काव्य गुण - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं,
    ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गणों के कारण मनुष्य की शोभा
    बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है।

यह मुख्य रूप से तीन होते हैं-

  • प्रसाद गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
      अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
  • ओज गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है,
      वह ओज गुण युक्त काव्य रचना मानी जाती है।
  • माधुर्य गुण :
    • हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है।
      अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

काव्य गुण Question 2:

‘भूषण’ के काव्य में किस काव्य-गुण की प्रधानता है ? 

  1. माधुर्य 
  2. ओज 
  3. प्रसाद 
  4. माधुर्य और ओज दोनों  

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : ओज 

काव्य गुण Question 2 Detailed Solution

‘भूषण’ के काव्य में ओज  काव्य-गुण की प्रधानता है।

ओज गुण – 

  • जहाँ कविता को पढ़कर ओज, जोश और उत्साह का भाव जाग्रत हो, 'वीर-रस' का संचार हो वहाँ 'ओज गुण' होता है।
  • 'ओज गुण' की कविता में 'ट' वर्ग की प्रमुखता होती है।
  • उदाहरण- 
    • एक क्षण भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट,
      कि तुम अनश्वर हो! तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट।

Key Pointsभूषण --

  • रीतिकाल की रीतिबद्ध शाखा के कवि है। 
  • रचनाएँ - 
    • शिवराजभूषण
    • शिवाबावनी
    • छत्रसालदशक
    • भूषण उल्लास
    • भूषण हजारा
    • दूषनोल्लासा।
  • शिवराजभूषण में अलंकार, छत्रसाल दशक में छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, दानशीलता व शिवाबवनी में छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों का वर्णन किया गया है।

Important Pointsप्रसाद गुण –

  • जिस गुण विशेष के कारण सहृदय के चित्त में कोई कविता तत्काल अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करे और भाव स्पष्ट हो जाए वहाँ 'प्रसाद गुण' होता है।
  • उदाहरण-
    • जसुमति मन अभिलास करै
      कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगे कब धरनी पग द्वैक धरै।
      कब द्वै दाँत दूध के देखों कब तोतरे मुख वचन झरै।
माधुर्य गुण --
  • जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं।
  • यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में रहता है।
  • इस गुण सम्पृक्त रचना में 'ट' वर्ग के शब्द, पंचम वर्णों के संयोग से बने दीर्घ शब्द व लंबे पद नहीं होते।
  • उदाहरण -
    • बीती विभावरी जाग री।
      अंबर-पनघट में डुबो रही
      तारा-घट ऊषा नागरी।"

Additional Informationकाव्य गुण –

  • जिस प्रकार किसी मनुष्य के बाह्य रूप, उसकी चाल-ढाल तथा व्यवहार को देखकर उसके गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है, उसी प्रकार कविता के बाह्य स्वरूप को देखकर 'काव्य गुणों' की प्रतीति होती है।
  • जैसे -
    • मनुष्य में विनम्रता, उदारता, दया आदि गुण देखे जाते हैं, उसी प्रकार काव्य में 'माधुर्य', 'प्रसाद' और 'ओज गुण' देखे जाते हैं।

काव्य गुण Question 3:

सुख दुख के मधुर मिलन से

यह जीवन हो परिपूरन;

फिर घन में ओझल हो शशि

फिर शशि से ओझल हो घन।

इन पंक्तियों में काव्य गुण है -

  1. ओज
  2. माधुर्य
  3. प्रसाद
  4. ओज-प्रसाद

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : प्रसाद

काव्य गुण Question 3 Detailed Solution

उपर्युक्त पंक्तियों मे प्रसाद गुण है। 

  • उपर्युक्त पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत की सुख-दुख कविता से ली गयी हैं।
  • इसमें कवि ने जीवन की असलियत को समझाने का प्रयास किया है।
  • वे कहते हैं कि-
    • सुख-दुख की खेलमिचौनी से जीवन अपना वास्तविक मुख खोल देता है।
      सुख-दुख के मधुर मिलन से जीवन पूर्ण हो जाता है।
      जीवन के दुख कभी सुख में बदलता है तो कभी सुख दुख में परिणित हो जाता है।
  • यहाँ घन दुख का प्रतीक है और शशि सुख का।
Key Points
प्रसाद गुण- 
  • जिस काव्य को सुनकर या पढ़कर हृदय प्रभावित हो,  बुद्धि में निर्मलता आये, मन में पवित्रता का एहसास हो, वो काव्य प्रसाद गुण से परिपूर्ण होता है।
  • उदाहरण- 
    • प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
      जाकी अंग-अंग बास समानी॥​
  • यहाँ पर प्रभु के प्रति भक्ति भाव प्रकट किया जा रहा है, जिससे हृदय प्रफुल्लित होता है, इसलिये इन पंक्तियों मे प्रसाद गुण प्रकट हो रहा है।

Important Pointsओज गुण

  • काव्य के जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त दीप्त हो जाता है, अर्थात सहृदय के चित्त में तेज का संचार हो जाता है, उसे ओज गुण कहते हैं।
  • ओज गुण वीर, रौद्र और वीभत्स रसों में पाया जाता है।
  • इसमें ट, ठ, ड, ढ, ध आदि कठोर वर्गों का प्रयोग होता है।
  • ओज गुण की प्रकृति माधुर्य से भिन्न होती है।
  • उदाहरण-
    • अमर राष्ट्र उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र यह मेरी बोली।
      यह ‘सुधार' समझौते वाली, मुझको भाती नहीं ठिठोली ॥   
      (माखनलाल चतुर्वेदी)

माधुर्य गुण-

  • जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं।
  • यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में होता है।
  • उदाहरण-
    • बीती विभावरी जाग री।
      अंबर-पनघट में डुबो रही
      तारा-घट ऊषा नागरी।​

Additional Informationसुमित्रानंदन पंत- 

  • जन्म- 1900-1977 ईo
  • काव्य कृतियाँ-
    • ग्रन्थि (1920)
    • गुंजन (1932)
    • ग्राम्या (1940)
    • युगांत (1936)
    • स्वर्णधूलि (1947)
    • कला और बूढ़ा चाँद (1959)
    • लोकायतन (1964)
    • चिदंबरा (1968)

काव्य गुण Question 4:

प्रसाद गुण का उदाहरण नहीं है-

  1. विनती सुन लो हे भगवान। हम सब बालक हैं नादान।

    विद्या-बुद्धि नहीं कुछ पास। हमें बना लो अपना दास।

  2. मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें।
  3. मैं जो नया ग्रन्थ विलोकता हूँ, भाता मुझे सो नव मित्र-सा है।
  4. देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोये।

    पानी पऱात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोये।।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें।

काव्य गुण Question 4 Detailed Solution

सही विकल्प 'मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें' है। 

Key Points

  • पंक्ति मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें प्रसाद गुण का उदाहरण नहीं है। 
  • प्रस्तुत पंक्ति में माधुर्य गुण है। 
  • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है। 
  • वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
  • अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है।
  • उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
प्रसाद गुण युक्त काव्य पंक्ति  अर्थ 

विनती सुन लो हे भगवान। हम सब बालक हैं नादान।

विद्या-बुद्धि नहीं कुछ पास। हमें बना लो अपना दास।

हे भगवान हमारी विनती सुन लो हम सभी नादान बालक है। 

आप हमे अपना दास बना लो हमारे पास विद्या बुद्धि नहीं है। 

मैं जो नया ग्रन्थ विलोकता हूँ, भाता मुझे सो नव मित्र-सा है। मैं जो भी नया ग्रंथ लिखता हूँ,वह मुझे मित्र लगने लगता है। 

देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोये।

पानी पऱात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोये।।

सुदामा की दीन दशा देखकर श्री कृष्ण रोने लगे। 

सुदामा जी के परात मे हाथ धुलाये और श्री कृष्ण के आखों से बहते हुए आँसुओ से पैर धुल गए। 

माधुर्य गुण युक्त काव्य पंक्ति-

'मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें'

  • श्री कृष्ण अपने अधरों पर मुरली रखकर धीरे धीरे मधुरता से बजते हुए 
  • मधुबन से निकल रहे है।  

काव्य गुण Question 5:

'हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से, प्रबुद्ध-शुद्ध भारती।

स्वयं प्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती।

अमर्त्य वीर-पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो

इस काव्यांश में निहित काव्य-गुण है-

  1. ओज
  2. प्रसाद
  3. माधुर्य
  4. प्रासादान्त

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : ओज

काव्य गुण Question 5 Detailed Solution

'हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से, प्रबुद्ध-शुद्ध भारती।

स्वयं प्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती।

अमर्त्य वीर-पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो।

इस काव्यांश में निहित काव्य-गुण है- ओज

Key Pointsओज गुण -

  • काव्य के जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त दीप्त हो जाता है, अर्थात सहृदय के चित्त में तेज का संचार हो जाता है, उसे ओज गुण कहते हैं।
  • ओज गुण वीर, रौद्र और वीभत्स रसों में पाया जाता है।
  • इसमें ट, ठ, ड, ढ, ध आदि कठोर वर्गों का प्रयोग होता है।
  • ओज गुण की प्रकृति माधुर्य से भिन्न होती है।
  • उदाहरण -
    • अमर राष्ट्र उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र यह मेरी बोली।
      यह ‘सुधार' समझौते वाली, मुझको भाती नहीं ठिठोली॥

Important Pointsप्रसाद गुण -

  • जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते हैं।
  • स्वच्छता एवं स्पष्टता प्रसाद गुण की विशेषता मानी जाती है।
  • उदाहरण -
  • “चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।
    स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बर तल में ।”

माधुर्य गुण -

  • जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं।
  • यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में रहता है।
  • इस गुण सम्पृक्त रचना में 'ट' वर्ग के शब्द, पंचम वर्णों के संयोग से बने दीर्घ शब्द व लंबे पद नहीं होते।
  • उदाहरण -
    • 'बीती विभावरी जाग री।
      अंबर-पनघट में डुबो रही
      तारा-घट ऊषा नागरी।"

Additional Information

  •  प्रस्तुत पंक्ति जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'चन्द्रगुप्त' नाटक की है

Top काव्य गुण MCQ Objective Questions

"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती स्वयं प्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती"

प्रस्तुत पंक्तियों में काव्य का कौन-सा गुण मौजूद है ?

  1. माधुर्य
  2. ओज
  3. प्रसाद
  4. इनमें से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : ओज

काव्य गुण Question 6 Detailed Solution

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उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "ओज गुण" सही है अन्य विकल्प असंगत है।

Key Points
  • उपर्युक्त पंक्तियों में ओज गुण हैं।
  • उपर्युक्त पंक्तियां जयशंकर प्रसाद की हैं।
  • ओज गुण का शाब्दिक अर्थ है-तेज, प्रताप या दीप्ति । 
  • यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स, रौद्र और भयानक रस में पाया जाता है।
Additional Information
  • प्रसाद गुण
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है। 
    • अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
  • माधुर्य गुण 
    • हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है। 
    • अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

निम्नलिखित में 'माधुर्य गुण' का उदाहरण हैः

  1. सिखा दो ना मधुपकुमारि! मुझे भी अपना मीठा गान।

    कुसुम के चुने कटोरों से करा दो ना कुछ-कुछ मधुपान।।

  2. वह आता।

    दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।

  3. कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि।

    कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

    मानहु मदन दुंदुभी दीनी।

    मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।

  4. विकसते मुरझाने को फूल, उदित होता छिपने को चंद।

    शून्य होने को भरते मेघ, दीप जलता होने को मंद।

    यहाँ किसका अनंत यौवन, अरे अस्थिर यौवन।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 :

कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि।

कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

मानहु मदन दुंदुभी दीनी।

मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।

काव्य गुण Question 7 Detailed Solution

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'माधुर्य गुण' का उदाहरण हैः 

कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि।

कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

मानहु मदन दुंदुभी दीनी।

मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।

माधुर्य गुण-

  • काव्य से हृदय में मधुरता का संचार होना 'माधुर्य गुण' कहलाता है। 
  • उदाहरण-
    • बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल- मीरा 
  • इसका संबंध शृंगार, करुण और शांत रस से होता है।

Key Pointsसिखा दो ना मधुपकुमारि! मुझे भी अपना मीठा गान। कुसुम के चुने कटोरों से करा दो ना कुछ-कुछ मधुपान।।-

  • रचनाकार-सुमित्रानंदन पंत 
  • विधा-काव्य 
  • यह मधुकरी कविता की पंक्तियाँ है।वह आता। दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।-
  • रचनाकार-सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
  • विधा-काव्य 
  • यह भिक्षुक कविता की पंक्तियाँ है। 

कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन राम हृदय गुनि। मानहु मदन दुंदुभी दीनी। मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।-

  • रचनाकार-गोस्वामी तुलसीदास 
  • विधा-काव्य  
  • यह रामचरितमानस के बालकाण्ड से से लिया गया दोहा है। 

विकसते मुरझाने को फूल, उदित होता छिपने को चंद। शून्य होने को भरते मेघ, दीप जलता होने को मंद। यहाँ किसका अनंत यौवन, अरे अस्थिर यौवन।-

  • रचनाकार-महादेवी वर्मा 
  • विधा-काव्य 
  • यह नीहार काव्य संग्रह से ली गई पंक्तियाँ हैं। 

Additional Informationकाव्य गुण-

  • शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है।
  • वामन के अनुसार ’गुण’ काव्य के नित्य धर्म है।

“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः।” काव्य गुण की यह परिभाषा किस आचार्य ने प्रस्तुत की है?

  1. भामह
  2. दंडी
  3. मम्मट
  4. वामन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : वामन

काव्य गुण Question 8 Detailed Solution

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“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः।” काव्य गुण की यह परिभाषा 'वामन' आचार्य ने प्रस्तुत की है।

Key Points

  • वामन रीति संप्रदाय के प्रवर्तक है।
  • वामन ने रीति को काव्य की अत्मा माना है।
  • वामन के अनुसार पदों की विशिष्ट रचना को रीति कहते है।
  • वामन ने रीति के तीन भेद माने है।
  • 1) वैदर्भी 2) गौडी 3) पांचाली

Additional Information 

आचार्य  काव्य गुण की परिभाषा
भामह  शब्दार्थो सहितो काव्यम गद्य पद्य च तद्विधा।
दंडी

शरीर तावदिष्टार्य व्यवच्छिना पदावली

मम्मट तद्दोषौ शब्दार्थों सगुणवनलंकृति पुनः क्वापि।

"काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः" काव्य-गुण की यह परिभाषा किस आचार्य ने दी है?

  1. भामह 
  2. आनंदवर्धन 
  3. अभिनवगुप्त 
  4. वामन 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : वामन 

काव्य गुण Question 9 Detailed Solution

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"काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः" काव्य-गुण की यह परिभाषा आचार्य वामन ने दी है।

  • अर्थ-
    • शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है 

Key Pointsआचार्य वामन-

  • समय-8 वीं शती
  • ग्रन्थ-
    • काव्यलंकार सूत्र।
  • रीति को काव्य की आत्मा माना है। 
  • रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक मने जाते है

Important Pointsआचार्य भामह-

  • समय-छठी शती 
  • आचार्य भामह को 'अलंकार सम्प्रदाय' का प्रवर्तक माना जाता है।
  • मुख्य ग्रन्थ-
    • दशकुमार चरित,अवन्तिसुंदरी कथा आदि
  • अलंकार संबंधी भामह का प्रमुख ग्रन्थ है-
    • काव्यालंकार
    • यह ग्रन्थ परिच्छेदों में व्यक्त हैं।

आनंदवर्धन-

  • समय- 9वीं शती 
  • मुख्य ग्रन्थ-
    • ध्वन्यालोक,अभिनव भारती,तन्त्रालोक आदि। 
  • ध्वनि को काव्य की आत्मा माना है। 
  • यह ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक है।

अभिनवगुप्त-

  • समय-10 वीं शती 
  • मुख्य ग्रन्थ-
    • अभिनवभारती,तन्त्रालोक,ध्वन्यालोक आदि।

निम्नलिखित पंक्तियों में कौन सा गुण विद्यमान है:

हिमाद्रि तुंग श्रंग से प्रबुध्द शुध्द भारती।

स्वयं प्रभा, समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।

  1. माधुर्य गुण
  2. प्रसाद गुण
  3. तमो गुण
  4. ओज गुण

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : ओज गुण

काव्य गुण Question 10 Detailed Solution

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उपरोक्त पंक्तियों में ओज गुण है। अन्य विकल्प असंगत हैं। अत: सही उत्तर विकल्प 4 'ओज गुण' है।

Key Points

  • उपरोक्त पंक्ति ओज गुण का उदाहरण है।
  • इसमें  गौडी रीति की तरह इसमें संयुक्ताक्षरों, ट वर्गीय वर्णों, सामासिक पदों एवं रेफयुक्त वर्णों का प्रयोग अधिक किया गया है।
  • यह वीर रस से युक्त है, अत: ‘ओज’ गुण है।

Additional Information 

काव्य गुण - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं, ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गणों के कारण मनुष्य की शोभा बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है। यह मुख्य रूप से तीन होते हैं -

गुण का नाम

परिभाषा

प्रसाद गुण

ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है। अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।

ओज गुण

ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है, वह ओजगुणयुक्त काव्य रचना मानी जाती है।

माधुर्य गुण

हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है। अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

 

निम्नलिखित में से ‘माधुर्य गुण' का उदाहरण नहीं है :

  1. लाली बन सरल कपोलों की,

    आँखों में अंजन सी लगती।

    कुंचित अलकों सी घुंघराली,

    मन की मरोर बन कर जगती।

  2. कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।

    कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

  3. देखि सुदामा की दीन दसा

    करुना करि कै करुनानिधि रोये।

    पानी परात को हाथ छुयो नहिं,

    नैनन के जल सों पग धोये।

  4. नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।

    करहु सो मो उर धाम, सदा क्षीर-सागर सयन।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 :

देखि सुदामा की दीन दसा

करुना करि कै करुनानिधि रोये।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं,

नैनन के जल सों पग धोये।

काव्य गुण Question 11 Detailed Solution

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‘माधुर्य गुण' का उदाहरण नहीं है- 

देखि सुदामा की दीन दसा

करुना करि कै करुनानिधि रोये।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं,

नैनन के जल सों पग धोये।।

  • यह पंक्तियाँ नरोत्तमदास जी ने सुदामा चरित को लेकर लिखी है। 

Key Pointsकामायनी-

  • रचनाकार-जयशंकर प्रसाद 
  • प्रकाशन वर्ष-1935 ई. 
  • विधा-काव्य 
  • मुख्य पात्र-
    • मनु, श्रद्धा, इड़ा, कुमार, मानव आदि। 
  • मुख्य-
    • इसमें 15 सर्ग हैं- चिंता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, इड़ा आदि। 
    • इसकी कथावस्तु का आधार ऋग्वेद, छान्दोग्य उपनिषद, शतपथ ब्राह्मण तथा श्रीमद्भगवद है। 
    • इसका मुख्य रस शांत रस है।  

Important Pointsमाधुर्य गुण-

  • किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में जहाँ मधुरता का संचार होता है, वहाँ माधुर्य गुण होता है।
  • यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है।

Additional Informationसूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'-

  • जन्म-1889-1961 ई. 
  • रचनाएँ-
    • अनामिका(1923 ई.)
    • परिमल(1930 ई.)
    • गीतिका(1936 ई.)
    • तुलसीदास(1938 ई.)
    • कुकुरमुत्ता(1942 ई.)
    • नए पत्ते(1946 ई.) आदि। 

काव्य गुण Question 12:

वीर रस में इनमें से कौन-से गुण की प्रधानता रहती है?

  1. ओज
  2. प्रसाद
  3. माधुर्य
  4. ये सभी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : ओज

काव्य गुण Question 12 Detailed Solution

सही उत्तर है - ‘ओज’।
  • वीर रस में इनमें से ओज गुण की प्रधानता रहती है।

Key Points

  • ओज गुण वीर-रस में संयत भाव से रहता है। क्योकि, वीर उत्साही होते हैं, क्रोधी नहीं।
  • वीर रस का स्थायी भाव उत्साह हैं। युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता हैं।
    युद्ध मे विपक्षी को देखकर, ओजस्वी वीर घोषणाएं या वीर गीत सुनकर तथा उत्साह वर्धक कार्यकलापों को देखने से यह रस जाग्रत होता हैं।

Additional Information

  • काव्य गुण - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं,
    ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गणों के कारण मनुष्य की शोभा
    बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है।

यह मुख्य रूप से तीन होते हैं-

  • प्रसाद गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
      अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
  • ओज गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है,
      वह ओज गुण युक्त काव्य रचना मानी जाती है।
  • माधुर्य गुण :
    • हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है।
      अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

काव्य गुण Question 13:

काव्य-गुण के विषय में गलत कथन है  

  1. आचार्य मम्मट के अनुसार गुण रस के उत्कर्ष के कारण रूप धर्म हैं।
  2. आचार्य भरत ने गुणों की संख्या आठ मानी है।
  3. जिसमें स्वच्छता, सरलता और सहजग्राह्यता हो, प्रसाद गुण कहलाता है।
  4. माधुर्य गुण का संबंध शृंगार, करुण और शांत रसों से होता है।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : आचार्य भरत ने गुणों की संख्या आठ मानी है।

काव्य गुण Question 13 Detailed Solution

काव्य-गुण के विषय में गलत कथन है-आचार्य भरत ने गुणों की संख्या आठ मानी है।

  • आचार्य भरत ने गुणों की संख्या दस मानी हैं-
    • ​माधुर्य 
    • ओज 
    • प्रसाद 
    • श्लेष 
    • समता 
    • सुकुमारता 
    • अर्थव्याप्ति 
    • उदारता 
    • क्रांति 
    • समाधि 

Key Pointsविभिन्न आचार्यों द्वारा मानी गयी गुणों की संख्या हैं-

आचार्य  गुण संख्या 
दंडी  10 
भामह  03 
वामन  20 
आनंदवर्धन  03 
मम्मट  03 
भोजराज  24 
विश्वनाथ 03 
जगन्नाथ  03

Important Pointsकाव्य गुण-

  • यह माना गया है की काव्य का मूल रस है और रस का धर्म गुण है। 
  • गुण के बगैर रस संभव नहीं है। 
  • सामान्यतः तीन गुण स्वीकार किए गए हैं-
    • माधुर्य 
    • ओज 
    • प्रसाद 

आचार्य मम्मट के अनुसार-

  • जिस प्रकार शूरता,वीरता आदि हमारी आत्मा के धर्म है हमारे शरीर के नही;उसी प्रकार शब्द-अर्थ काव्य के शरीर रूप माने गए है और रस को सभी काव्यज्ञों के द्वारा आत्मा कहा गया है।
  • रस काव्य में अंगी माना गया है जबकि गुण अलंकार आदि इसके अंग है।
  • अत: काव्य गुण काव्य की आत्मारूप रस को बढाने वाले हेतु (कारण) है।
  • ये रसो के साथ निश्चित रूप से उपस्थित होते है।
  • अर्थात् सभी रसो में कोई-न-कोई गुण निश्चित रूप से होता ही है

Additional Informationगुण इस प्रकार हैं-

गुण  माधुर्य गुण  ओज गुण  प्रसाद गुण 
अर्थ  काव्य से हृदय मे मधुरता का संचार। काव्य से हृदय मे उत्साह,उमंग,स्फूर्ति का संचार।  काव्य से हृदय मे शांति व प्रसन्नता का संचार। 
संबद्ध रस  शृंगार,करुण और शांत।  वीर,रौद्र,भयानक और वीभत्स।  समस्त रस। 
उदाहरण  बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल।  हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।  नर हो न निराश क्रो मन को। 

काव्य गुण Question 14:

निम्नलिखित में से कौन-सा काव्य गुण नहीं है?

  1. श्लेष
  2. माधुर्य
  3. शक्ति
  4. समाधि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : शक्ति

काव्य गुण Question 14 Detailed Solution

 काव्य गुण नहीं है-शक्ति

  • शक्ति अर्थ-ताकत,पराक्रम आदि।
  • पर्यायवाची शब्द-अधिकार,अधिपत्य,स्वत्व,प्रभुत्व आदि।

Key Points

  • काव्य गुण-काव्य के सौंदर्य में वृद्धि करने वाले और उसमें अनिवार्य रूप से विद्यमान रहने वाले धर्म को गुण कहते हैं।

विभिन्न आचार्यो ने गुण के अलग-अलग भेद बताये हैं-

  • भरतमुनि और दंडी-10 काव्य गुण
  • वामन-20 काव्य गुण
  • भामह,मम्मट,विश्वनाथ और जगन्नाथ-3 काव्य गुण

Important Points

भरतमुनि द्वारा स्वीकृत 10 गुण हैं-

  • श्लेष,ओज,प्रसाद,समता,समाधि,माधुर्य,सुकुमारता,सौकुमार्य और उदारता,अर्थव्यक्ति और कांति।

मुख्य रूप से 3 गुण स्वीकृत हैं-

  • प्रसाद,ओज और माधुर्य।

माधुर्य गुण-

  • अर्थ-काव्य से हृदय में मधुरता का संचार होना माधुर्य गुण कहलाता है।
  • उदाहरण-"बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल।"- मीरा

ओज गुण-

  • अर्थ-काव्य से हृदय में उत्साह,उमंग,आवेश और स्फूर्ति आदि का संचार होना ओज गुण कहलाता है।
  • उदाहरण-"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।"- जयशंकर प्रसाद

प्रसाद गुण-

  • अर्थ-काव्य से हृदय में शांति का संचार होना और चित्तगत प्रसन्नता की अनुभूति प्रसाद गुण कहलाता है।
  • उदाहरण-"जाकी रही भावना जैसी।प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।"-तुलसीदास

काव्य गुण Question 15:

सुख दुख के मधुर मिलन से

यह जीवन हो परिपूरन;

फिर घन में ओझल हो शशि

फिर शशि से ओझल हो घन।

इन पंक्तियों में काव्य गुण है -

  1. ओज
  2. माधुर्य
  3. प्रसाद
  4. ओज-प्रसाद

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : प्रसाद

काव्य गुण Question 15 Detailed Solution

उपर्युक्त पंक्तियों मे प्रसाद गुण है। 

  • उपर्युक्त पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत की सुख-दुख कविता से ली गयी हैं।
  • इसमें कवि ने जीवन की असलियत को समझाने का प्रयास किया है।
  • वे कहते हैं कि-
    • सुख-दुख की खेलमिचौनी से जीवन अपना वास्तविक मुख खोल देता है।
      सुख-दुख के मधुर मिलन से जीवन पूर्ण हो जाता है।
      जीवन के दुख कभी सुख में बदलता है तो कभी सुख दुख में परिणित हो जाता है।
  • यहाँ घन दुख का प्रतीक है और शशि सुख का।
Key Points
प्रसाद गुण- 
  • जिस काव्य को सुनकर या पढ़कर हृदय प्रभावित हो,  बुद्धि में निर्मलता आये, मन में पवित्रता का एहसास हो, वो काव्य प्रसाद गुण से परिपूर्ण होता है।
  • उदाहरण- 
    • प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
      जाकी अंग-अंग बास समानी॥​
  • यहाँ पर प्रभु के प्रति भक्ति भाव प्रकट किया जा रहा है, जिससे हृदय प्रफुल्लित होता है, इसलिये इन पंक्तियों मे प्रसाद गुण प्रकट हो रहा है।

Important Pointsओज गुण

  • काव्य के जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त दीप्त हो जाता है, अर्थात सहृदय के चित्त में तेज का संचार हो जाता है, उसे ओज गुण कहते हैं।
  • ओज गुण वीर, रौद्र और वीभत्स रसों में पाया जाता है।
  • इसमें ट, ठ, ड, ढ, ध आदि कठोर वर्गों का प्रयोग होता है।
  • ओज गुण की प्रकृति माधुर्य से भिन्न होती है।
  • उदाहरण-
    • अमर राष्ट्र उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र यह मेरी बोली।
      यह ‘सुधार' समझौते वाली, मुझको भाती नहीं ठिठोली ॥   
      (माखनलाल चतुर्वेदी)

माधुर्य गुण-

  • जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं।
  • यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में होता है।
  • उदाहरण-
    • बीती विभावरी जाग री।
      अंबर-पनघट में डुबो रही
      तारा-घट ऊषा नागरी।​

Additional Informationसुमित्रानंदन पंत- 

  • जन्म- 1900-1977 ईo
  • काव्य कृतियाँ-
    • ग्रन्थि (1920)
    • गुंजन (1932)
    • ग्राम्या (1940)
    • युगांत (1936)
    • स्वर्णधूलि (1947)
    • कला और बूढ़ा चाँद (1959)
    • लोकायतन (1964)
    • चिदंबरा (1968)
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