काव्य परिभाषा MCQ Quiz - Objective Question with Answer for काव्य परिभाषा - Download Free PDF
Last updated on Jul 1, 2025
Latest काव्य परिभाषा MCQ Objective Questions
काव्य परिभाषा Question 1:
आचार्य कुन्तक ने वक्रोक्ति के कितने भेद माने हैं ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 1 Detailed Solution
आचार्य कुन्तक ने वक्रोक्ति के 6 भेद माने हैं
Key Pointsआचार्य कुंतक-
- समय-10 वीं शती
- ग्रंथ-वक्रोक्तिजीवितम्
- वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रतिपादक है।
- इनके अनुसार-
- वक्रोक्ति ही काव्य की आत्मा है।
Important Pointsवक्रोक्ति सिद्धांत-
- वक्रोक्ति दो शब्दों 'वक्र' और 'उक्ति' की संधि से निर्मित शब्द है।
- इसका शाब्दिक अर्थ है-
- ऐसी उक्ति जो सामान्य से अलग हो। टेढा कथन अर्थात जिसमें लक्षणा शब्द शक्ति हो।
- वक्रोक्ति में चार बातों का होना आवश्यक है-
- वक्ता की एक उक्ति।
- उक्ति का अभिप्रेत अर्थ होना चाहिए।
- श्रोता उसका कोई दूसरा अर्थ लगाये।
- श्रोता अपने लगाये अर्थ को प्रकट करे।
- आचार्य कुंतक के अनुसार वक्रोक्ति के छः भेद हैं-
- वर्ण विन्यास वक्रता
- पद पूर्वार्ध वक्रता
- पद परार्द्ध वक्रता
- वाक्य वक्रता
- प्रबंध वक्रता
- प्रकरण वक्रता
काव्य परिभाषा Question 2:
“रस लौकिक जीवन की प्रत्यक्ष अनुभूतियों से भिन्न कोटि की अनुभूति है” किस आचार्य के द्वारा यह स्थापना दी गई है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 2 Detailed Solution
सही उत्तर है- शंकुक – न्यायशास्त्र (अनुमितिवाद)
Key Pointsआचार्य शंकुक-
- भरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या आचार्य शंकुक ने अनुमितिवाद नाम से प्रस्तुत की है।
- शंकुक के अनुसार-
- "सामाजिक अपनी वासना से नट पर रामादि का अनुमान करते हुए उस रस को प्राप्त केट है जिसे स्वयं रामादि ने प्राप्त किया है।"
- इन्होनें इसके लिए 'चित्र-तुरंग-न्याय' का आश्रय लिया।
- इनके अनुसार-
- जिस प्रकार चित्र मे घोड़े को वास्तविक अर्थ मे भागता हुआ समझ लेते है,उसी प्रकार रामादि का अभिनय करने वाले पात्रों को भी उनका अनुकर्त्ता समझ लिया जाता है।
Important Pointsभट्ट लोल्लट-
- भरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या आचार्य भट्ट लोल्लट ने उत्पत्तिवाद के नाम से की है।
- 'निष्पत्ति' का अर्थ उत्पत्ति करने से इनके सिद्धांत को 'उत्पत्तिवाद' कहा गया।
- इसे आरोपवाद भी कहा जाता है।
- इनके अनुसार स्थाई भाव अपरिपक्व होता है,किन्तु वह विभव,अनुबहव और संचारी भाव के संयोग से परिपक्व हो जाता है।
- परिपक्वता को प्राप्त स्थायी भाव ही 'रस' कहलाता है।
आचार्य भट्ट नायक-
- भरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या आचार्य भट्ट नायक ने भुक्तिवाद नाम से प्रस्तुत की है।
- इन्होंने काव्य में रस निष्पत्ति के तीन व्यापार माने है-
- अभिधा
- भावकत्व
- भोजकत्व
- इन्होंने रस निष्पत्ति की व्याख्या करते हुए सर्वप्रथम साधारणीकरण की व्याख्या प्रस्तुत की है।
आचार्य अभिनवगुप्त-
- भरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या आचार्य अभिनवगुप्त ने अभिव्यक्तिवाद नाम से प्रस्तुत की है।
- इनके अनुसार,स्थायी भाव व्यंग्य है और विभावादि व्यंजक।इनके संयोग से रस की अभिव्यक्ति होती है।
- स्थायी भाव हृदय में वासना के रूप में हमेशा होते हैं।
- वे रति आदि स्थायी भाव ही 'साधरणीकृत' विभावादि के द्वारा व्यंजित होकर शृंगार आदि रस के रूप में अभिव्यक्त हो जाते हैं।
Additional Informationभरतमुनि के रस सूत्र के व्याख्याकार-
आचार्य | दर्शन | व्याख्या | संयोग |
भट्ट लोल्लट | मीमांसा | उत्पत्तिवाद | उत्पादय-उत्पादक भाव संबंध |
श्री शंकुक | न्याय | अनुमितिवाद | अनुमाप्य-अनुमापक भाव संबंध |
भट्ट नायक | सांख्य | भुक्तिवाद | भोज्य-भोजक भाव संबंध |
अभिनवगुप्त | शैव | अभिव्यक्तिवाद | व्यंग्य-व्यंजक भाव संबंध |
काव्य परिभाषा Question 3:
निम्नलिखित कथनों को उनके सिद्धांतों के साथ सुमेलित कीजिए :
कथन |
सिद्धांत |
||
(i) |
काव्य-शैली की बाह्य साज-सज्जा |
1. |
वक्रोक्ति |
(ii) |
काव्य के स्वाभाविक गुण - शुद्धता, संक्षिप्तता, स्पष्टता, आदि |
2. |
ध्वनि |
(iii) |
अर्थ की व्यंग्यात्मकता |
3. |
अलंकार |
(iv) |
अर्थ की लाक्षणिकता |
4. |
रीति |
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 3 Detailed Solution
सही उत्तर है- (i) - 3, (ii) - 4, (iii) - 1, (iv) - 2
Key Pointsसही सुमेलन है-
कथन |
सिद्धांत |
||
(i) |
काव्य-शैली की बाह्य साज-सज्जा |
3. |
अलंकार |
(ii) |
काव्य के स्वाभाविक गुण - शुद्धता, संक्षिप्तता, स्पष्टता, आदि |
4. |
रीति |
(iii) |
अर्थ की व्यंग्यात्मकता |
1. |
वक्रोक्ति |
(iv) |
अर्थ की लाक्षणिकता |
2. |
ध्वनि |
Important Pointsरीति सिद्धांत-
- रीति सिद्धांत के प्रवर्तक का श्रेय आचार्य वामन को माना जाता है।
- इन्होने अपनी रचना काव्यलंकारसूत्रवृत्ति में इसकी विवेचना किया है।
- 'रीतिरात्मा काव्यस्य' रीति काव्य की आत्मा है।
ध्वनि सिद्धांत-
- ध्वनि सिद्धान्त, भारतीय काव्यशास्त्र का एक सम्प्रदाय है।
- भारतीय काव्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों में यह सबसे प्रबल एवं महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है।
- ध्वनि सिद्धान्त का आधार 'अर्थ ध्वनि' को माना गया है।
- इस सिद्धान्त की स्थापना का श्रेय 'आनंदवर्धन' को है किन्तु अन्य सम्प्रदायों की तरह ध्वनि सिद्धान्त का जन्म आनंदवर्धन से पूर्व हो चुका था।
वक्रोक्ति सिद्धांत-
- वक्रोक्ति दो शब्दों 'वक्र' और 'उक्ति' की संधि से निर्मित शब्द है।
- इसका शाब्दिक अर्थ है- ऐसी उक्ति जो सामान्य से अलग हो। टेढा कथन अर्थात जिसमें लक्षणा शब्द शक्ति हो।
- भामह ने वक्रोक्ति को एक अलंकार माना था।
- उनके परवर्ती कुन्तक ने वक्रोक्ति को एक सम्पूर्ण सिद्धान्त के रूप में विकसित कर काव्य के समस्त अंगों को इसमें समाविष्ट कर लिया।
- इसलिए कुन्तक को वक्रोक्ति संप्रदाय का प्रवर्तक आचार्य माना जाता है।
अलंकार सिद्धान्त-
- इस सिद्धान्त या सम्प्रदाय के प्रवर्तक भामह माने जाते हैं।
- इन्होंने चारूता (सौन्दर्य) को सर्वप्रमुख तत्व माना।
- अलंकार मत के अनुसार काव्य यदि सौन्दर्य युक्त है तो स्वाभाविक रूप से वह रसयुक्त होगा ही ।
- इस प्रकार रस और अलंकार परस्पर पोषक सिद्धान्त के रूप में विकसित हुए ।
- अलंकारवादी आचार्यों की दृष्टि में काव्योचित सौन्दर्य का जो भी स्रोत (रस, रीति, गुण, ध्वनि) है,
- वह अलंकार है तथा रस की अपेक्षा चारूता या सौन्दर्य काव्य के व्यापक तत्व हैं।
काव्य परिभाषा Question 4:
निम्नलिखित में से भोजराज की पुस्तक है :
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 4 Detailed Solution
श्रृंगार प्रकाश भोजराज की पुस्तक है।
श्रृंगार प्रकाश
- लेखक :- भोजराज
- विधा :- टीका
यह ज्यादातर अलंकार-शास्त्र (बयानबाजी) और रस से संबंधित है।
इस महान कृति का एक बड़ा हिस्सा श्रृंगार रस को समर्पित है , जो भोज के सिद्धांत के अनुसार: "केवल एक ही रस स्वीकार्य है।
1908 में प्रलेखित छत्तीस अध्यायों से युक्त संस्कृत कविता का एक विशाल समूह है।
अभिनवभारती
- अभिनवगुप्त की रचना है।
- यह भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की टीका है।यह नाट्यशास्त्र की एकमात्र टीका है।
- इसमें अभिनवगुप्त ने आनन्दवर्धन के ध्वन्यालोक में प्रतिपादित 'अभिव्यक्ति के सिद्धान्त' और कश्मीर के प्रत्यभिज्ञा दर्शन के प्रकाश में भरतमुनि के रससूत्र की व्याख्या की है।
व्यक्तिविवेक
- "व्यक्तिविवेक" के निर्माता महिम भट्ट।
- काल ईसा की 11वीं शताब्दी है।
- इनकी उपाधि "राजानक" थी।
काव्य कौतुक
- रचनाकार :- अभिनव भारती
- आलंकारिक काल की रचना है।
- इस युग से संबद्ध तीन प्रौढ़ रचनाओं का परिचय प्राप्त है - काव्य-कौतुक-विवरण, ध्वन्यालोकलोचन तथा अभिनवभारती।
काव्य परिभाषा Question 5:
'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति किसकी रचना है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 5 Detailed Solution
'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति रचना है- आचार्य वामन
Key Points
- 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' महान संस्कृत आचार्य वामन द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
- वामन 8वीं शताब्दी के संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रतिष्ठित विद्वान थे।
- 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' में वामन ने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन किया है,
- और यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
- इसमें काव्य के गुण-दोषों, अलंकारों और रसों के सिद्धांतों की चर्चा की गई है।
- वामन का यह ग्रंथ संस्कृत काव्य में अलंकार विद्यालय का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।
Additional Informationआचार्य दंडी-
- यह (7वीं-8वीं शताब्दी) भारतीय काव्यशास्त्र और अलंकारशास्त्र के प्रमुख विद्वान रहे हैं।
- उन्होंने अपनी रचना 'काव्यादर्श' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
- 'काव्यादर्श' एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो संस्कृत काव्यशास्त्र के अध्ययन में आवश्यक माना जाता है।
- जिसने भारतीय साहित्यिक परंपरा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- इसमें काव्य की संरचना, गुण, दोष, और अलंकारों के सिद्धांतों का विस्तृत और वैज्ञानिक रूप से विश्लेषण किया गया है।
आचार्य भामह-
- यह (7वीं-8वीं शताब्दी) संस्कृत काव्यशास्त्र के एक प्रमुख विद्वान थे।
- उन्होंने अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ 'काव्यालंकार' में काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
- भामह का 'काव्यालंकार' काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है,
- जो काव्य के विभिन्न घटकों, गुणों, दोषों और अलंकारों को समझने और परिभाषित करने में महत्वपूर्ण योगदान करता है।
- उन्होंने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की।
आचार्य अभिनव गुप्त-
- आचार्य अभिनवगुप्त (10वीं शताब्दी) कश्मीर शैवदर्शन के प्रमुख आचार्य और भारतीय सौंदर्यशास्त्र के विद्वान थे।
- उन्होंने काव्य और अलंकारों के सिद्धांतों पर व्यापक रूप से चर्चा की है,
- जिसका मुख्य स्रोत उनका ग्रंथ 'अभिनवभारती' है, जो भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' की टिप्पणी है।
- अभिनवगुप्त की दृष्टि में काव्य की वास्तविक प्रतिष्ठा और इसके रसपूर्ण अनुभव का महत्व सर्वोपरि है।
- उन्होंने भाषा, भाव और रस के संयोजन पर बल दिया, जिससे काव्यशास्त्र में एक नई गहराई आई।
- उनके विचार भारतीय काव्य और नाट्यशास्त्र के अध्ययन में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
Top काव्य परिभाषा MCQ Objective Questions
'आलंबनत्व धर्म का साधारणीकरण होता है' पंक्ति किस विद्वान की है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर है - आलंबनत्व धर्म का साधारणीकरण होता है।
- रामचन्द्र शुक्ल ने साधारणीकरण को संदर्भित करते हुए कहा है कि
- आलंबनत्व धर्म का साधारणीकरण होता है।
- वे सहृदय के आश्रय से तदात्म्य स्वीकारते हैं और आलंबन का साधारणीकरण।
Key Pointsअन्य विकल्प -
राममूर्ति त्रिपाठी |
|
गुलाबराय |
|
विश्वनाथ मिश्र |
|
'प्रसन्न पद-नव्यार्थ युक्त्युदबोध विधायिनी ।
स्फुन्ती सत्कवेबुद्धि∶ प्रतिभा सर्वतोमुखी।।' - उक्त कथन किसका है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDF- प्रस्तुत कथन वाग्भट द्वारा दिया गया है।
- हेतु का तात्पर्य 'कारण' से है।
- बाबू गुलाबराय के अनुसार - "हेतु का अभिप्राय उन साधनों से है जो कवि की काव्य रचना में सहायक होते हैं। "
Key Points
- संस्कृत काव्यशास्त्र में मुख्यतः तीन काव्य - हेतुओं को माना गया - प्रतिभा ( शक्ति ) , व्युत्पत्ति और अभ्यास।
- मम्मट - शक्ति , निपुणता , अभ्यास।
- रुद्रट - शक्ति , व्युत्पत्ति , अभ्यास।
रससूत्र की 'अनुमितिवादी' व्याख्या करने वाले आचार्य है:
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFरससूत्र की 'अनुमितिवादी' व्याख्या करने वाले आचार्य शंकुक है। अत: सही विकल्प 4) शंकुक ही होगा।
- शंकुक भरत के नाट्य शास्त्र के प्रमुख व्याख्याकार है।
अन्य काव्यशास्त्र-
- भट्ट नायक - भुक्तिवाद
- अभिनव गुप्त - अभिव्यक्तिवाद
- लोलट्ट - उत्पत्तिवाद, आरोपवाद
'निर्भय-भीम-व्यायोग' के लेखक है
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDF- 'निर्भय-भीम-व्यायोग' के लेखक हैं रामचन्द्र सूरि हैं।
- भारतीय काव्यशास्त्र से अभिप्राय मूलतः संस्कृत काव्यशास्त्र से है।
Key Points
- काव्य से सम्बंधित विविध पक्षों का अध्ययन करने वाले शास्त्र को 'काव्यशास्त्र' कहा जाता है।
Important Points
- राजशेखर - काव्य मीमांसा।
- धनपाल - भविसयत्तकहा।
निम्नलिखित में से किस आचार्य ने 'रीति' का एक भेद' अवन्ती' को माना है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFभोजराज ने अवंती को रीति का एक भेद माना है।
आचार्य भोजराज ने ’अवंती’ नामक एक अन्य काव्य-रीति की परिकल्पना प्रस्तुत की है।
भरतमुनि में भी अवंती को रीति का एक भेद माना है।
भोजराज के अनुसार रीति के भेद
- वैदर्भी, गौङी, पांचाली, लाटी अवंतिका, मागधी
वर्तमान में सभी आचार्याे के द्वारा सर्वमान्य रूप में काव्य रीति के मख्यतः निम्न तीन भेद ही स्वीकार किये जाते है।
- वैदर्भी रीति
- गौड़ी रीति
- पांचाली रीति
रीति संख्या (आचार्यों के अनुसार)
भरतमुनि :- अवंती दक्षिणात्या, पांचाली, मागधी
भामह :- वैदर्भी, गौङी
दण्डी :- वैदर्भी, गौङी
वामन :- वैदर्भी गौङी, पांचाली
रुद्रट :- वैदर्भी गौङी लाटी, पांचाली
आनंदवर्धन :- असमासा, अल्पसमासा, दीर्घसमासा
राजशेखर :- लच्छोभि (वैदर्भी), मागधी, पांचालिका
कुंतक :- सुकुमार (वैदर्भी), विचित्र (गौङी), मध्यम (पांचाली)
"काव्यालंकारसूत्र' ग्रन्थ के रचनाकार हैं-
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDF- काव्यालंकार सूत्र - आचार्य वामन द्वारा रचित काव्य ग्रन्थ है।
Key Points
- सूत्रों की संख्या - 319
- जन्म काल- 8 वीं शती
- भाग- 05 परिच्छेद
- काव्यालंकार सूत्र- वामन द्वारा रचित काव्य ग्रन्थ है,
- जबकि काव्यालंकार भामह द्वारा रचित है।
Additional Information
- वामन (6वीं शती) - काव्यालंकार
- दंडी (7 वीं शती) - काव्यादर्श
- कुंतक (10 वीं शती) - वक्रोक्ति जीवित
''शक्ति: कवित्वबीज रूप: संस्कार विशेष: ''अर्थात् कवित्व - निर्माण के बीज - रूप विशिष्ट संस्कार को शक्ति कहते है।
प्रतिभा के विषय मे उक्त उद्धरण किस आचार्य का है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रतिभा के विषय मे उक्त उद्धरण- 3)आचार्य मम्मट का है।
Important Points
- आचार्य मम्मट अपने शास्त्रग्रंथ काव्य प्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए।
- इन्होंने काव्य प्रकाश को 10 भागों में बांटा है।
- जिसको उन्होंने प्रथम उल्लास,द्वितीय उल्लास आदि नाम दिए हैं।
Additional Information
आचार्य |
विशेषताएँ |
कुंतक |
|
जगन्नाथ पण्डितराज |
|
आचार्य मम्मट |
|
दण्डी |
|
वक्रोक्तिवाद के प्रतिपादक आचार्य हैं
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर है - कुंतक।
Key Pointsकुंतक-
- अलंकारशास्त्र के एक मौलिक विचारक विद्वान थे।
- ये अभिधावादी आचार्य थे।
- उनकी एकमात्र रचना वक्रोक्तिजीवित है जो अधूरी ही उपलब्ध हैं।
- वक्रोक्ति को वे काव्य का 'जीवित' (जीवन, प्राण) मानते हैं।
- वक्रोक्तिरेव वैदग्ध्यभंगीभणितिरुच्यते।
दण्डी के काव्यशास्त्रीय ग्रंथ का नाम है:
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFदण्डी के काव्यशास्त्रीय ग्रंथ का नाम काव्यादर्श है।अतः सही उत्तर काव्यादर्श होगा ।
Additional Information
प्रतिदर्श |
सम्पूर्ण से लिया गया छोटा अंश जिसमें सम्पूर्ण के गुण व लक्षण विद्यमान होते हैं। |
काव्यशास्त्र |
'काव्यशास्त्र' काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धान्तों की ज्ञानराशि है। |
भाषादर्श |
भाषादर्शन का सम्बन्ध इन चार केन्द्रीय समस्याओं से है- अर्थ की प्रकृति, भाषा प्रयोग, भाषा संज्ञान, तथा भाषा और वास्तविकता के बीच सम्बन्ध। |
निम्नलिखित ग्रंथों को कालानुक्रम में व्यवस्थित कीजिये :
(A) काव्यादर्श
(B) औचित्य विचारचर्चा
(C) काव्यालंकार सूत्रवृत्ति
(D) अभिनव भारती
नीचे दिये गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन चुनिये -
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य परिभाषा Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDFविकल्प 2 (A,C,D,B) सही है।
काव्यादर्श (6ठी से 7वी शताब्दी) दंडी
काव्य अलंकार सूत्रवृत्ती (8वी - 9वी शताब्दी) :- वामन
अभिनव भारती (9वी- 10वी शताब्दी) :- अभिनव गुप्त
औचित्य-विचार-चर्चा (10वी शताब्दी) :- क्षेमेन्द्र
काव्यादर्श के प्रथम परिच्छेद में काव्य के तीन भेद किए गए हैं– (१) गद्य, (२) पद्य तथा (३) मिश्र।।
गद्य पुन: 'आख्यायिका' और 'कथा' शीर्षक दो उपभेदों में विभाजित है।
औचित्य-विचार-चर्चा में क्षेमेन्द्र ने औचित्य को काव्य का मूलभूत तत्त्व माना है तथा उसकी प्रकृष्ट व्यापकता काव्य प्रत्येक अंग में दिखलाई है।
अभिनवभारती, भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की टीका है। वस्तुत: नाट्यशास्त्र की यह एकमात्र पुरानी टीका है।
क्षेमेन्द्र
- बोधिसत्त्वावदानकल्पलता में बुद्ध के पूर्व जन्मों से संबद्ध पारमितासूची आख्यानों का पद्यबद्ध वर्णन है।
- दशावतारचरित इनका उदात्त महाकाव्य है जिसमें भगवान विष्णु से दसों अवतारों का बड़ा ही रमणीय तथा प्रांजल, सरस एवं मुंजुल काव्यात्मक वर्णन किया गया है।
- वात्स्यायनसूत्रसार नामक एक कामशास्त्र की भी इन्होने रचना की।
आचार्य वामन
- (8वीं शताब्दी का उत्तरार्ध - 9वीं शताब्दी का पूर्वार्ध) प्रसिद्ध अलंकारशास्त्री थे।
- उनके द्वारा प्रतिपादित काव्यलक्षण को रीति-सिद्धान्त कहते हैं।
- वामन द्वारा रचित काव्यालङ्कारसूत्र, काव्यशास्त्र का दर्शन निर्माण का प्रथम प्रयास है। यह ग्रन्थ सूत्र रूप में है। वे रीति को काव्य की आत्मा कहते हैं।