भ्रान्तिमान MCQ Quiz - Objective Question with Answer for भ्रान्तिमान - Download Free PDF
Last updated on Jun 5, 2025
Latest भ्रान्तिमान MCQ Objective Questions
भ्रान्तिमान Question 1:
पाइ महावर दैंन क नाइनि बैठी आइ ।
फिरि फिरि जानि महावरी एड़ी मीड़ति जाइ ।।"
में अलंकार है-
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 1 Detailed Solution
पाइ महावर दैंन क नाइनि बैठी आइ ।
फिरि फिरि जानि महावरी एड़ी मीड़ति जाइ ।।"
में अलंकार है - भ्रान्तिमान
Key Points
- यहां "महावर दैंन क नाइनि" (नाइन का महावर लगाना) और "एड़ी मीड़ति जाइ" (एड़ी को रगड़ना) दोनों कार्यों को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है
- कि यह भ्रम उत्पन्न होता है कि महावर स्वयं एड़ी को रगड़ रही है, जबकि यह कार्य नाइनि कर रही है।
- इसलिए इन पंक्तियों में भ्रान्तिमान अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
Important Pointsभ्रान्तिमान:-
- जब कोई वस्तु को देखकर हम उसे उसके समान गुणों
- या विशेषताओं वाले किसी अन्य पदार्थ (उपमान) के रूप में मान लेते हैं तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार माना जाता है।
- उदाहरण -
- जानि स्याम को स्याम-घन नाचि उठे वन मोर।
- (ऊपर दिए गए वाक्य में मोर श्री कृष्ण को सदृश्य के कारण श्याम मेघ ( काले बादल ) समझ रहे हैं
- तथा श्याम के काले रंग के कारण मोरो को काले बादलो का भ्रम हो गया है।)
Additional Information
उपमा:-
उदाहरण-
संदेह:-
उदाहरण-
उत्प्रेक्षा:-
उदाहरण-
|
भ्रान्तिमान Question 2:
पाइ महावर दैंन क नाइनि बैठी आइ ।
फिरि फिरि जानि महावरी एड़ी मीड़ति जाइ ।।"
में अलंकार है-
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 2 Detailed Solution
पाइ महावर दैंन क नाइनि बैठी आइ ।
फिरि फिरि जानि महावरी एड़ी मीड़ति जाइ ।।"
में अलंकार है - भ्रान्तिमान
Key Points
- यहां "महावर दैंन क नाइनि" (नाइन का महावर लगाना) और "एड़ी मीड़ति जाइ" (एड़ी को रगड़ना) दोनों कार्यों को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है
- कि यह भ्रम उत्पन्न होता है कि महावर स्वयं एड़ी को रगड़ रही है, जबकि यह कार्य नाइनि कर रही है।
- इसलिए इन पंक्तियों में भ्रान्तिमान अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
Important Pointsभ्रान्तिमान:-
- जब कोई वस्तु को देखकर हम उसे उसके समान गुणों
- या विशेषताओं वाले किसी अन्य पदार्थ (उपमान) के रूप में मान लेते हैं तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार माना जाता है।
- उदाहरण -
- जानि स्याम को स्याम-घन नाचि उठे वन मोर।
- (ऊपर दिए गए वाक्य में मोर श्री कृष्ण को सदृश्य के कारण श्याम मेघ ( काले बादल ) समझ रहे हैं
- तथा श्याम के काले रंग के कारण मोरो को काले बादलो का भ्रम हो गया है।)
Additional Information
उपमा:-
उदाहरण-
संदेह:-
उदाहरण-
उत्प्रेक्षा:-
उदाहरण-
|
भ्रान्तिमान Question 3:
“पायँ महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी मीड़ति जाय।।” इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 3 Detailed Solution
उपर्युक्त पंक्ति में भ्रांतिमान अलंकार है।
पायें महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, ऐड़ी भीड़त जाय।
- इसमें नायिका की लाल एड़ियों को देखर नाईन महावर समझकर रगड़ती है।
अतः यहाँ भ्रांति प्रतीत होती है।
अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।
उपर्युक्त दोहा बिहारी जी का है।
भ्रांतिमान अलंकार-
जहाँ उपमान एवं उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाय अर्थात जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए ,वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
अतिशयोक्ति अलंकार-
जहाँ पर लोक - सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का वर्णन होता है। वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि ।
सगरी लंका जल गई ,गये निसाचर भागि। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
विरोधाभास अलंकार-
इसके अंतर्गत एक ही वाक्य में आपस में कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
"मोहब्बत एक मीठा ज़हर है"
इस वाक्य में ज़हर को मीठा बताया गया है जबकि ये ज्ञातव्य है कि ज़हर मीठा नहीं होता। अतः, यहाँ पर विरोधाभास अलंकार की आवृति है।
विभावना अलंकार-
जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
उदाहरण -
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी॥
भ्रान्तिमान Question 4:
निम्न में से कौन-सा एक अलंकार युग्म असंगत है?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 4 Detailed Solution
"सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है" पंक्ति में भ्रांतिमान अलंकार असंगत है।
अतः इस ' पंक्ति में "संदेह अलंकार" है।
Key Pointsसंदेह अलंकार:
जहाँ उपमेय के लिए दिये गए उपमानों में सन्देह बना रहे तथा निश्चय न किया जा सके, वहाँ सन्देह अलंकार होता है।
- सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
- सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है।
महाभारत काल में द्रौपदी के चीर हरण के समय उसकी बढ़ती साड़ी (चीर) को देखकर दु:शासन के मन में यह संशय उत्पन्न हो रहा है।
कि यह साड़ी के बीच नारी (द्रौपदी) है या नारी के बीच साड़ी है अथवा साड़ी नारी की बनी हुई है या नारी साड़ी से निर्मित है।
Additional Informationअसंगति अलंकार:
जब किसी पद में किसी कार्य का अपने मूल स्थान से हटकर किसी अन्य स्थान पर घटित होना पाया जाता है
अर्थात् जो काम जहाँ होना चाहिए, वहाँ नहीं होकर किसी अन्य स्थान पर होता है तो वहाँ असंगति अलंकार माना जाता है।
- ‘पलनि पीक अंजन अधर, धरे महावर भाल।
- आजु मिलै हो भली करी, भले बनै हो लाल।।’
सामान्यत: पान का बीड़ा मुख में रखा जाता है, अंजन (काजल) आँखों में लगाया जाता है तथा महावर पैरों पर लगाया जाता है।
परन्तु यहाँ कवि बिहारी ने पान (पीक) को आँखों की पलकों में, अंजन को होठों पर तथा महावर को मस्तक (भाल) पर चित्रित किया है।
इस प्रकार वास्तविक स्थान पर पदार्थ नहीं होने के कारण यहाँ असंगति अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार:
जहां उपमेय में उपमान की संभावना अथवा कल्पना कर ली गई हो, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
इसके बोधक शब्द हैं– मनो, मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु, ज्यों आदि।
- सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
- मनहुं नीलमनि सैल पर, आपत परयौ प्रभात।
उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुन्दर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की ओर उनके शरीर पर शोभायमान पीताम्बर में प्रभत की धूप की मनोरम सम्भावना,
अथवा कल्पना की गई है।
रूपक अलंकार:
जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।
- उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
- विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग।।
प्रस्तुत दोहे में 'उदयगिरि' पर 'मंच' का, 'रघुवर' पर 'बाल-पतंग' (सूर्य) का, 'संतों' पर 'सरोज' का एवं 'लोचनों' पर 'भृंगों' (भौंरों) का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है।
भ्रान्तिमान Question 5:
वृन्दावन विहरत फिरै राधा नन्द किशोर।
नीरद यामिनी जानि संग डोलैं बोलैं मोर।।
यहाँ किस अलंकार का प्रयोग हुआ है?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 5 Detailed Solution
इन पंक्तियों में भ्रान्तिमान अलंकार है।
Key Points व्याख्या-
- पंक्ति में भ्रांतिमान अलंकार है। वृन्दावन में राधा-कृष्ण बिहार कर रहे हैं। रात में उन्हें सघन मेघ समझ मोर बोलते है और साथ-साथ चलते हैं।
भ्रान्तिमान अलंकार-
-
जब एक जैसे दिखाई देने के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है या समानता के कारण किसी दूसरी वस्तु का भ्रम होता है तब इसे भ्रांतिमान अलंकार कहते हैं
उदाहरण -
नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है।
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?
Additional Information उपमा अलंकार-
- उपमा का अर्थ होता है -तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दुसरे व्यक्ति या वस्तु से की जाये वहां उपमा अलंकर होता है।
उदाहरण-
तुम्हारा मुख चन्द्रमा सा सुन्दर है।
सन्देह अलंकार-
- रूप रंग आदि के स्रादिश्य से जहाँ उपमेय में उपमान का संशय बना रहे या उपमेय के लिए दिए गये उपमानों में संशय रहे, वहां सन्देह अलंकार होता है।
उदाहरण-
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है कि नारिकी ही सारी है।
उदाहरण-
- वह शब्द जो किसी वस्तु के विवरण को कम शब्दों में व्यक्त करे उसे उदाहरण कहते हैं।
Top भ्रान्तिमान MCQ Objective Questions
बृन्दाबन बिहरत फिरें, राधा नन्द किसोर I
जलद दामिनी जानि संग, डोलैं बोलैं मोर II' में कौन सा अलंकार है?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFबृन्दाबन बिहरत फिरें, राधा नन्द किसोर Iजलद दामिनी जानि संग, डोलैं बोलैं मोर II' में भ्रांतिमान अलंकार है।Key Points
- भ्रांतिमान अलंकार - जब किसी वस्तु में किसी अन्य वस्तु होने का भ्रम हो जाये तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
- यहाँ भी भ्रम की स्थिति पँक्तियों में झलक रही है।
- अत: सही विकल्प भ्रांतिमान अलंकार ही होगा।
Additional Information
अलंकार | परिभाषा |
विरोधभाष |
|
उपमा |
|
संदेह |
|
अतिशयोक्ति अलंकार |
|
श्लेष अलंकार |
|
“पायँ महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी मीड़ति जाय।।” इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त पंक्ति में भ्रांतिमान अलंकार है।
पायें महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, ऐड़ी भीड़त जाय।
- इसमें नायिका की लाल एड़ियों को देखर नाईन महावर समझकर रगड़ती है।
अतः यहाँ भ्रांति प्रतीत होती है।
अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।
उपर्युक्त दोहा बिहारी जी का है।
भ्रांतिमान अलंकार-
जहाँ उपमान एवं उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाय अर्थात जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए ,वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
अतिशयोक्ति अलंकार-
जहाँ पर लोक - सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का वर्णन होता है। वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि ।
सगरी लंका जल गई ,गये निसाचर भागि। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
विरोधाभास अलंकार-
इसके अंतर्गत एक ही वाक्य में आपस में कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
"मोहब्बत एक मीठा ज़हर है"
इस वाक्य में ज़हर को मीठा बताया गया है जबकि ये ज्ञातव्य है कि ज़हर मीठा नहीं होता। अतः, यहाँ पर विरोधाभास अलंकार की आवृति है।
विभावना अलंकार-
जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
उदाहरण -
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी॥
जानि स्याम घन स्याम को, नाच उठे वन-मोरा
में कौन सा अलंकार है। सही विकल्प चुनिए?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF'जानि स्याम घन स्याम को, नाच उठे वन-मोरा' में भ्रांतिमान अलंकार है। अतः सही विकल्प 2 'भ्रांतिमान अलंकार' है।
Key Points
- 'जानि स्याम घन स्याम को, नाच उठे वन-मोरा' में भ्रांतिमान अलंकार है।
- जब किसी पद में किसी सादृश्य विशेष के कारण उपमेय (जिसकी तुलना की जाए) में उपमान (जिससे तुलना की जाए) का भ्रम उत्पन्न हो जाता है तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार माना जाता है।
अन्य विकल्प -
अलंकार |
परिभाषा |
उदाहरण |
अनुप्रास अलंकार |
जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। |
चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल-थल में। |
संदेह अलंकार |
जहाँ ऐसा वर्णन हो कि उपमेय और उपमान दोनों में समता देखकर यह निश्चित नहीं हो पाता है कि उपमेय वास्तव में उपमेय है या उपमान है। इसमें दुविधा बनी रहती है और निश्चित नहीं हो पाता है,वहां संदेह अलंकार होता है। |
मद भरे ये नलिन नयन मलीन हैं । |
यमक अलंकार |
जिस काव्य में समान शब्द के अलग-अलग अर्थों में आवृत्ति हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। |
कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौरात नर या पाए बौराय।। |
Additional Information
अलंकार की परिभाषा |
अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है- 'आभूषण', जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषण से उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है अर्थात जो किसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है। |
बृन्दाबन बिहरत फिरें, राधा नन्द किसोर।
जलद दामिनी जानि संग, डौलै बोलै मोर।’ में कौन सा अलंकार है?Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFभ्रांतिमान अलंकार - जब किसी वस्तु में किसी अन्य वस्तु होने का भ्रम हो जाये तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। यहाँ भी भ्रम की स्थिति पँक्तियों में झलक रही है। अत: सही विकल्प 3) भ्रांतिमान अलंकार ही होगा।
विशेष:
अलंकार |
परिभाषा |
विरोधभाष |
जहाँ वाक्य में विरोध का आभाष हो परन्तु विरोध ना हो। जैसे- बैन सुन्या जबते मधुर, तबते सुनत ना बैन। |
उपमा |
जब दो भिन्न वस्तुओं में समानता दिखाई जाती है। जैसे – कर कमल-सा कोमल है। |
संदेह |
जब उपमेय मे उपमान का संशय हो तो वहाँ संदेह अलंकार होगा। |
इनमें से किस विकल्प में अलंकार और उससे सम्बन्धित उदाहरण सुमेलित नहीं हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFभ्रांतिमान – कहहिं सप्रेम एक एक पाहीं। राम-लखन सखि होहिं की नाहीं,
उक्त मेल उचित विकल्प है, क्योंकि इसमें अलंकार सम्बंधित कथन असत्य दिया गया है। अत: प्रश्नानुसार सही विकल्प 3 "भ्रांतिमान – कहहिं सप्रेम एक एक पाहीं। राम-लखन सखि होहिं की नाहीं।" है।
- भ्रांतिमान अलंकार- जहाँ किसी विशेष शब्द के माध्यम से दो वस्तुओं का भ्रम या भान हो, उसे भ्रांतिमान अलंकार कहते है।अत: उचित उदाहरण
"बादल आओ काले काले केश भिगाओ" होगा।
अन्य महत्वपूर्ण अलंकार-
- श्लेष – जहाँ एक शब्द के अनेक अर्थ प्रयुक्त होते हों। जैसे- रास के बिना जीना रास नही आता अर्थात रास- रासलीला, रास - अच्छा नही लगना, मन को नही भाना
- रूपक – जब गुण में अत्अयंत समानता पर उपमेय और उपमान को एक जैसा बताया जाए। जैसे- अम्बर पनघट में डुबो रही, ताराघट ऊषा नागरी। अर्थात अम्बर आकाश और पनघट को एक समान बताना
- उत्प्रेक्षा – जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की जाए। जैसे- सागर चरण धोता है अर्थात सागर स्वयं उपमेय है।
भ्रान्तिमान Question 11:
वृन्दावन विहरत फिरै राधा नन्द किशोर।
नीरद यामिनी जानि संग डोलैं बोलैं मोर।।
यहाँ किस अलंकार का प्रयोग हुआ है?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 11 Detailed Solution
इन पंक्तियों में भ्रान्तिमान अलंकार है।
Key Points व्याख्या-
- पंक्ति में भ्रांतिमान अलंकार है। वृन्दावन में राधा-कृष्ण बिहार कर रहे हैं। रात में उन्हें सघन मेघ समझ मोर बोलते है और साथ-साथ चलते हैं।
भ्रान्तिमान अलंकार-
-
जब एक जैसे दिखाई देने के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है या समानता के कारण किसी दूसरी वस्तु का भ्रम होता है तब इसे भ्रांतिमान अलंकार कहते हैं
उदाहरण -
नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है।
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?
Additional Information उपमा अलंकार-
- उपमा का अर्थ होता है -तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दुसरे व्यक्ति या वस्तु से की जाये वहां उपमा अलंकर होता है।
उदाहरण-
तुम्हारा मुख चन्द्रमा सा सुन्दर है।
सन्देह अलंकार-
- रूप रंग आदि के स्रादिश्य से जहाँ उपमेय में उपमान का संशय बना रहे या उपमेय के लिए दिए गये उपमानों में संशय रहे, वहां सन्देह अलंकार होता है।
उदाहरण-
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है कि नारिकी ही सारी है।
उदाहरण-
- वह शब्द जो किसी वस्तु के विवरण को कम शब्दों में व्यक्त करे उसे उदाहरण कहते हैं।
भ्रान्तिमान Question 12:
निम्न में से कौन-सा एक अलंकार युग्म असंगत है?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 12 Detailed Solution
"सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है" पंक्ति में भ्रांतिमान अलंकार असंगत है।
अतः इस ' पंक्ति में "संदेह अलंकार" है।
Key Pointsसंदेह अलंकार:
जहाँ उपमेय के लिए दिये गए उपमानों में सन्देह बना रहे तथा निश्चय न किया जा सके, वहाँ सन्देह अलंकार होता है।
- सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
- सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है।
महाभारत काल में द्रौपदी के चीर हरण के समय उसकी बढ़ती साड़ी (चीर) को देखकर दु:शासन के मन में यह संशय उत्पन्न हो रहा है।
कि यह साड़ी के बीच नारी (द्रौपदी) है या नारी के बीच साड़ी है अथवा साड़ी नारी की बनी हुई है या नारी साड़ी से निर्मित है।
Additional Informationअसंगति अलंकार:
जब किसी पद में किसी कार्य का अपने मूल स्थान से हटकर किसी अन्य स्थान पर घटित होना पाया जाता है
अर्थात् जो काम जहाँ होना चाहिए, वहाँ नहीं होकर किसी अन्य स्थान पर होता है तो वहाँ असंगति अलंकार माना जाता है।
- ‘पलनि पीक अंजन अधर, धरे महावर भाल।
- आजु मिलै हो भली करी, भले बनै हो लाल।।’
सामान्यत: पान का बीड़ा मुख में रखा जाता है, अंजन (काजल) आँखों में लगाया जाता है तथा महावर पैरों पर लगाया जाता है।
परन्तु यहाँ कवि बिहारी ने पान (पीक) को आँखों की पलकों में, अंजन को होठों पर तथा महावर को मस्तक (भाल) पर चित्रित किया है।
इस प्रकार वास्तविक स्थान पर पदार्थ नहीं होने के कारण यहाँ असंगति अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार:
जहां उपमेय में उपमान की संभावना अथवा कल्पना कर ली गई हो, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
इसके बोधक शब्द हैं– मनो, मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु, ज्यों आदि।
- सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
- मनहुं नीलमनि सैल पर, आपत परयौ प्रभात।
उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुन्दर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की ओर उनके शरीर पर शोभायमान पीताम्बर में प्रभत की धूप की मनोरम सम्भावना,
अथवा कल्पना की गई है।
रूपक अलंकार:
जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।
- उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
- विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग।।
प्रस्तुत दोहे में 'उदयगिरि' पर 'मंच' का, 'रघुवर' पर 'बाल-पतंग' (सूर्य) का, 'संतों' पर 'सरोज' का एवं 'लोचनों' पर 'भृंगों' (भौंरों) का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है।
भ्रान्तिमान Question 13:
बृन्दाबन बिहरत फिरें, राधा नन्द किसोर I
जलद दामिनी जानि संग, डोलैं बोलैं मोर II' में कौन सा अलंकार है?
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 13 Detailed Solution
बृन्दाबन बिहरत फिरें, राधा नन्द किसोर Iजलद दामिनी जानि संग, डोलैं बोलैं मोर II' में भ्रांतिमान अलंकार है।Key Points
- भ्रांतिमान अलंकार - जब किसी वस्तु में किसी अन्य वस्तु होने का भ्रम हो जाये तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
- यहाँ भी भ्रम की स्थिति पँक्तियों में झलक रही है।
- अत: सही विकल्प भ्रांतिमान अलंकार ही होगा।
Additional Information
अलंकार | परिभाषा |
विरोधभाष |
|
उपमा |
|
संदेह |
|
अतिशयोक्ति अलंकार |
|
श्लेष अलंकार |
|
भ्रान्तिमान Question 14:
निम्नलिखित काव्य पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है। सोचता है अन्य शुक यह कौन है?Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 14 Detailed Solution
उपर्युक्त काव्य पंक्ति का उचित उत्तर विकल्प 4 ‘भ्रांतिमान अलंकार’ हैं। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर होंगे।
स्पष्टीकरण:
‘नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से। देखकर सहसा हुआ शुक मौन है। सोचता है अन्य शुक यह कौन है?’ इन काव्य पंक्तियों में ‘नाक में तोते का’ और ‘दन्त पंक्ति में अनार के दाने का’ भ्रम हुआ है, इसीलिए यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है।
अलंकार |
परिभाषा |
उदाहरण |
भ्रांतिमान अलंकार |
जहां एक जैसे दिखाई देने के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है या समानता के कारण किसी दूसरी वस्तु का भ्रम होता है, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। |
पाँव महावर दें को नाइन बैठी आय।
|
विशेष:
अलंकार |
परिभाषा |
उदाहरण |
उत्प्रेक्षा अलंकार |
जब समानता होने के कारण उपमेय में उपमान के होने की कल्पना की जाए या संभावना हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। |
ले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण। |
रूपक अलंकार |
जहां उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप होता है।
|
मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों। |
संदेह अलंकार |
जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता है। |
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है। सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है। |
भ्रान्तिमान Question 15:
''चंद के भरम होत, मोद है कुमोदिनी कों'' में अलंकार है-
Answer (Detailed Solution Below)
भ्रान्तिमान Question 15 Detailed Solution
'चंद के भरम होत, मोद है कुमोदिनी कों' पंक्तियों में भ्रान्तिमान अलंकार है।
Key Points
- चंद के भरम होत, मोद है कुमोदिनी कों - यहाँ कुमुदिनी को देखकर चंद्रमा का भ्रम होना, भ्रांतिमान अलंकार का लक्षण है।
- जब उपमेय को भ्रमवश उपमान समझ लिया जाता है अर्थात उपमेय में उपमान का धोखा हो जाता है, तब वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
अन्य विकल्प -
- विरोधाभास अलंकार - विरोधाभास दो शब्दों से मिलकर बना है - विरोध + आभास। जहां वाक्य में विरोध का आभास प्रकट होता है परंतु विरोध नहीं होता है, वहां विरोधाभास अलंकार होता है।
- अतिशयोक्ति अलंकार - जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
Additional Information
अलंकार |
अलंकार का अर्थ है आभूषण। अतः काव्य में आभूषण अर्थात् सौंदर्यवर्धक गुण अलंकार कहलाते हैं। मुख्य रूप से अलंकार के दो भेद माने गए हैं - शब्दालंकार और अर्थालंकार। जब शब्दों में चमत्कार उत्पन्न होता है तो शब्दालंकार कहलाता है। जब अर्थों में चमत्कार उत्पन्न होता है तो अर्थालंकार कहलाता है। |
जैसे - सिंधु से अथाह (उपमा) - शब्दालंकार काली घटा का घमंड घटा (अनुप्रास) - अर्थालंकार |